प्रहलाद ओझा ‘भैंरू‘
1. ग्रहण, दीपावली, होली, नवरात्रा, श्राद्ध, संक्रांति, पूर्णिमा, व्रत व अमावस्या को संभोग करने से घर में क्लेष, स्वास्थ्य संबंध परेषानी व आयु का क्षय होता है ।
2. फैषन के चलते आजकल लोग नाखुन बढ़ाते है, इससे आसुरी प्रवृति पैदा होती है उनमें दया का भाव कम देखा गया है । नाखुन में गंदगी जमा होने से वह गंदगी भोजन के साथ पेट में चली जाती है अतः नाखुन न बढाये ।
3. औरत के मासिक चक्र के दौरान संभोग करने से, उसके हाथ का भोजन खाने से स्वास्थ्य की हानि होती है । महावारी के दौरान कम से कम तीन दिन रसोई व सात दिन देव स्पर्ष वर्जित है । उन्हें ‘राजगदी पर आसीन है‘ कहकर न केवल सम्मान दिया बल्कि आराम करने की सलाह दी । जो लोग इस बात को नहीं मानते व यह जान ले कि माहवारी के दौरान स्त्री के हाथों बेला गया पापड़ लाल हो जाता है । उसके हाथ का अचार खराब हो जाता है व तुलसी पौधा स्पर्ष करने पर सूखने लग जाता है ।
4. स्वास्थ्य की दृष्टि से सावन में हरड़, भादवा में चित्रक, आष्विन में गुड़, कार्तिक में मूली, मार्गषीर्ष में तेल, पोष में दूध, माघ में घी खिचड़ी, फाल्गुन में प्रातः स्नान, चैत्र में कड़वी नींद, बैषाख में चावल, ज्येष्ठ में दोपहर को सोना एवं आषाढ़ में केला सेवन आदि फायदेमंद है ।
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