थार रेगिस्तान और सब्जियां हमारे पश्चिमी राजस्थान की भौगोलिक स्थितियां कुछ ऐसी रहीं है कि पहले आसानी से हरी सब्जियां उपलब्ध नही हो पाती थी कारण था पानी की कमी! तब गंगनहर नहीं आयी थी और थार रेगिस्तान के वासियों को पानी की कमी में ही गुजारा करना होता था जहां पीने के पानी तक की कमी हो ऐसे में हरी सब्जियां तो बहुत दूर की कौड़ी थी और इनको उगाना व्यवहारिक नहीं था। ऐसे में कुछ ही ऐसे पेड़ झाड़िया थी जो पूरे मौसम सही टिक पाती जिनमे हमारे…
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गणगौर माता की आरती
गवरजा माता की आरती ( तर्ज – सांवरसा गिरधारी ) आंगणियों हरखाओ , बधावो रामा , आंगणियों हरखायो , माँ गवरजा पधारी , माता गिरिजा पधारी . देखो शैलजा पधारी , हरख मनावो ढम – ढम ढोल नगाड़ा बाजे , आभो गरजे बिजळी नाचे , ओ कुण शंख बजावे , बधावो रामा , ओकण शंख बजावे । माँ गवरजा । । 1 । । रुण – झुण , रुण – झुण पायल बाजे , सात सुरों में मनड़ो गावे , सुण – सुण मन हरसायो , बधावो रामा , सुण…
Read Moreधींगा गवर और पंथवाडी माता की कथा व कहानियां
धींगा गवरजा की कहानी ( मोम की गुडीया ) कैलाश पर्वत पर शिव – पार्वती बैठा था चैत्र माह शुरु होते ही ” गवरजा ” रा ” बालीकाओं कन्याओं ” द्वारा पूजण शुरु हो गया । पार्वती शिवजी सू बोली कि मैं भी म्हारे पिहर जावणो चाहू , आप हुकम करो तो । महादेव जी बोल्या , म्हारी भांग घोटण री व्यवस्था कूण करसी जने पार्वती व्यवस्था रे रूप में एक मोम री गुडिया बनाई और आपरी शक्ति सू उसमें जीव डाल दिया , बा चेतन हो गई पार्वती बे…
Read Moreदेखें वे गीत जो गणगौर में दोपहर के समय गाए जाते है
गणगौर में दोपहर में गाए जाने वाले गीत – नौरंगी गवर म्हारी चाँद गवरजा , भलो ए नादान गवरजा रत्नों रा खम्भा दीखे दूर सू , बम्बई हालो , लाखों पर लेखण पूरब देश में , कलकते हालो , गवरयो री मोज्यों बीकानेर में गढ़न कोटां सूं उतरी सरे , हाथ कमल केरो फूल शीश नारेळां सारियो सरे , बीणी बासक नाग रे | | बम्बई . . . बम्बइ . . . . . (1) चोतीणे रा चार चाकलिया , बड़ पीपल बड़ है भारी बड़ पीपल बड़ है…
Read Moreगणगौर में सुबह गाए जाने वाले गीत देखें
गणगौर सुबह के गीत – उठी – उठी- उठी – उठी गवर निन्दाड़ो खोल निन्दाड़ो खोल , सूरज तपे रे लिलाड़ एक पुजारी ऐ बाई म्हारी गवरजा , गवरजा , ज्यों रे घर रे टूठे म्होरी माय अन्न दे तो धन दे , बाई थरि सासरिये , पीवरिये , अन्न धन भया रे भण्डार ! डब्बा तो भरिया ए बाई थारे गैनों सु गोंठो सु, माणक मोती तपे रे लिलाड़, उठी – उठी गवर निन्दाड़ो खोल निन्दाड़ो खोल.. खोल कीवाडी- गवर गवरादे माता खोल किवाड़ी , ऐ बाहर उभी थोने…
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