क्या मासिक धर्म के बारे में रूढ़िवादी सोच रखता है समाज ?

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पिछले कई 100 वर्षों में सनातन धार्मिक शास्त्रों से स्त्रियों को लेकर बहुत से विषय इस प्रकार तोड़मरोड़ आधे अधूरे प्रस्तुत किए गए हैं कि आज यह समय आ गया कि हमारी बहनें माताएं और बेटियां पूछती है कि क्या मासिक धर्म के दौरान वो इतनी अशुद्ध हो जाती हैं कि भगवान उन्हें देखना भी पसंद नहीं करते ? आख़िर मंदिर के दरवाजे मासिक धर्म के दौरान उनके लिए क्यों बंद हो जाते हैं भला भगवान किसी का बुरा क्यों चाहेंगे ? उनका ये भी सवाल है कि आज आधुनिक युग में तो मासिक धर्म से अशुद्धि ना फैले इसके लिए व्यवस्था है सैनिटरी नैपकिंस है। तो क्या आज भी स्त्रियों को मंदिर जाने से रोका जाना चाहिए और क्या गायत्री मंत्र जैसे पवित्र मंत्र जो ब्रह्म और मोक्ष की ओर अग्रसर करते हैं वह एक रजस्वला स्त्री के मुख में पड़कर अपवित्र हो जाएंगे ? इन सभी के जवाब धर्म और विज्ञान के नजरिए से क्या है आइए जानते है।

 क्या मासिक धर्म स्त्रियों के लिए अपमानित करने वाला है ?

सनातन धर्म में स्त्रियों का मासिक धर्म या पीरियड्स कभी भी अपमानित रूप में नहीं रहा है बल्कि सनातन धर्म में रजस्वला को पुरुषों के ब्रह्मचर्य जितना सम्मानीय और पवित्र माना गया है। जहां पुरुष ब्रह्मचर्य का कठोर पालन करते हुए जीवन को रचने वाले बीज को संरक्षित करते हैं, वही एक रजस्वला स्त्री एक रजस्वला महिला इस बात का प्रतीक होती है कि उसने भी ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए जीवन को रचने वाले बीज का त्याग कर दिया है। पुरुषों में संयम और स्त्रियों में त्याग यानी पुरुषों में ब्रह्मचर्य और स्त्रियों में मासिक धर्म संतुल्य है और सनातन धर्म में बहुत पवित्र कर्म है। धरातल पर भी आपको ऐसे कई प्रमाण मिल जाएंगे इस बात की पुष्टि करते हैं कि स्त्रियों का जो मासिक धर्म है वो सनातन धर्म में अपमानजनक ना होकर एक पवित्र घटना है। वास्तव में आज भी आपको भारत के दक्षिणी हिस्से के कई गांव में देखने को मिल जाएगा कि जब भी किसी बालिका का पहला मासिक धर्म आता है तो उसको उत्सव के रूप में मनाया जाता है और केवल घर पर ही नहीं बल्कि पूरे गांव में सार्वजनिक रूप से उसका उत्सव होता है। और यह उत्सव भी एक दो दिन नही बल्कि एक हफ्ते और कई कई मामलों में 16 दिन तक चलता है। अगर सनातन धर्म में मासिक धर्म को एक नीच प्रकृति के कर्म की तरह देखा जाता तो इस तरह का उत्सव हो क्यों किया जाता। मासिक धर्म पर उत्सव क्यों मनाया जाता है ? मासिक धर्म की पवित्रता से संबंधित क्या प्रमाण है ? आइए देखते है –

अगर आपको आसाम गुवाहाटी के कामाख्या देवी मंदिर के विषय में पता है तो आपको पता होगा कि वहां पर ऐसी मान्यता है कि जून के महीने में देवी मां वहां रजस्वला होती है। इस दौरान वहा मेले का आयोजन होता है उत्सव मनाया जाता है। जिस धर्म में इस प्रकार से मासिक धर्म को पूजा जाता है देवी स्वयं रजस्वला हो जाती हैं वहां पर स्त्रियों के मासिक धर्म को लेकर इस प्रकार की संकीर्ण भावनाएं कैसे पैदा हो सकती हैं ? क्योंकि सनातन धर्म में यौन ऊर्जा को बहुत पवित्र माना जाता है जबकि अगर आप पश्चिमी देशों की ओर देखे या दूसरे धर्म पंथ में देखें तो वहां यौन ऊर्जा पर इन एनर्जी को एक पाप की तरह देखा जाता है। सनातन धर्म के पूर्वजों की आगे की सोच को झूठलाने और दबाने के लिए और गलत तरह से प्रदर्शित करने के लिए बार-बार प्रयास किए गए हैं।

जिस धर्म में देवी माँ कामाख्या रजस्वला होती हो वहां कैसे इसे संकीर्ण मानसिकता ने कैसे जन्म ले लिया ?

जब बाहर से हुए आक्रमण में मुगल आए पुर्तगाली आए डच और ब्रिटिश आए थे तो उससे पहले तक बालिकाओं के प्रथम मासिक धर्म को धूमधाम से मनाया जाता था। इस प्रथा को बंद करना पड़ा क्योंकि कोई भी माता-पिता ही नहीं चाहता था कि उसकी बेटी में परिपक्वता पा गई है। यह पता न चले इसलिए गुलामी के वर्षों में विदेशियों के खौफ से मासिक धर्म को मनाने के आयोजन खत्म कर दिए गए । लेकिन इनको मनाने के पीछे बहुत बड़ी मानसिकता छिपी हुई है। समाज और माता-पिता का दायित्व होता था कि जब प्रथम मासिक धर्म आए तो बालिका का जो अनुभव हो आनंदमय हो। जिससे आगे आने वाली मासिक धर्म में जो आनंदमई अनुभवहीन की स्मृतियां बच्ची को पीड़ा से दूर रखें। आज भी अगर आप देखिए किसी बहन बेटी के साथ अगर उसका शुरुआती पीरियड्स में कुछ गलत अनुभव हो जाते हैं, उसको आजीवन पीड़ा उठानी पड़ती है। आजीवन पीरियड्स को एक श्राप की तरह देखती हैं और इसीलिए इस प्रथा को हमारे सनातन धर्म के दूरदर्शी मुनियों ने शुरू की थी। जिसे कालांतर में समाप्त करना पड़ा और आज आप देखे तो दूसरे धर्म पंथ और देशों की जो रूढ़िवादी सोच है उस सनातन धर्म में घुस गई है । अब आपको केवल यह बताया जाएगा कि आपके धर्म की स्त्रियों को रजस्वला के समय मंदिर नहीं जाने दिया जाता। पूजा नहीं करने दिया जाता लेकिन आपको पूरी बात कोई नहीं बताएगा अगर आपको पूरी बात जाननी है तो आपको आयुर्वेद की सुश्रुत संहिता की रजस्वला परिचर्या को पढ़ना पड़ेगा ।

मासिक धर्म पर क्या कहती है आयुर्वेद की आयुर्वेद की सुश्रुत संहिता

रजस्वला परिचर्या एक सूची है जो ये निर्धारित करती है की एक रजस्वला स्त्री को क्या-क्या काम नहीं करना चाहिए। इस लिस्ट में स्त्री को ज्यादा बोलने, हंसने, शोरगुल में रहने से मना किया जाता है । उसके बाद दिन में सोने, बाल झाड़ने, काजल लगाने या फिर नहाने से भी मना किया जाता है। लेकिन इस लिस्ट में कहीं भी रजस्वला स्त्री को पूजना करने का फिर मंदिर जाने की बात नहीं की गई है । लेकिन फिर भी आपको स्नान करने से मना किया जा रहा है। बिना स्नान किए हुए सनातन धर्म मंदिर जाना उचित नहीं माना जाता है इसमें यह बात अंतर्निहित है। अगर आप स्नान नहीं करेंगे तो मंदिर कैसे जायेंगे ! पूजा कैसे करेंगे ! अब जो बातें दी गई हैं ऐसे ही नहीं दे दी गई है ये आयुर्वेद के नियमों के अनुरूप है ।

अगर आप देखें तो यह सभी हमारे धर्म भी ऐसे वैज्ञानिक ने रीतियां रही हैं जिनकी वजह से जो भारतीय महिलाओं में पीरियड को लेकर बीमारियां हैं वह पश्चिमी देशो की महिलाओं से काफी कम रही है । यही कारण है कि जैसे जैसे हम अपनी भारतीय भारतीय संस्कृति से दूर जाते जा रहे हैं वैसे ही वैसे हमारे देश की जो महिलाएं हैं उनमें मासिक धर्म से संबंधित जो बीमारियां हैं जैसे कि पीसीओडी पॉलीसिस्टिक ओवेरियन दिस इज फॉर पीसीओएस पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम बहुत तेजी से बढ़ता जा रहा है। आज हर 10 भारतीय बालिकाओं में एक बालिका को पीसीओएस की समस्या है । जिन स्त्रियों में या बालिकाओं में पीसीओडी की समस्या होती है उनमें में जरूरत से ज्यादा पुरुष हार्मोन टेस्ट्रोस्टोन उत्पादित होने लगता है। जिसकी वजह से मासिक धर्म में समस्या आती है।

आयुर्वेद में बताए गए शारीरिक दोष

अब आयुर्वेद के माध्यम से समझते हैं कि मासिक धर्म के समय स्त्रियों को बहुत से काम करने से क्यों रोका जाता है ? आयुर्वेद में शरीर के दो भाग होते हैं एक – स्थूल शरीर और दूसरा – सूक्ष्म शरीर । स्थूल शरीर है हमारा यह शरीर है जो हमें माता-पिता से मिला है जिसका हम अन्न, फल खाकर विकास करते है। दूसरा शरीर है सूक्ष्म शरीर । ये हमारे स्थूल शरीर को गति और सक्रियता देता है। आयुर्वेद में यह माना गया है की सूक्ष्म शरीर वो सटल कारण है जिसके कारण हमारा शरीर स्पंदन करता है, हमारी कोशिकाएं सक्रिय रहती है, इस प्रकार से शरीर को केवल एक इकाई के रूप में ना देख कर के दो तरह से देखा गया है। एक स्थूल शरीर और दूसरा सूक्ष्म शरीर । आयुर्वेद के अनुसार शरीर में तीन प्रकार के दोष पाए जाते हैं, इन तीन दोष के नाम है , 1. वात 2. पित्त और 3. कफ ।

शरीर में वात्त, पित्त और कफ का चरित्र

वात क्या करता है की सूक्ष्म शरीर के अंदर जितनी भी गतियां होती है वह वात कंट्रोल करता है। जैसे आपके अंदर जो रक्त है उसका संचार होना या मल मूत्र की गति होना, इन सभी चीजों को नियंत्रित करता है। शरीर के अंदर जो वायु की गति का आगमन हो गया या निर्गमन हो उन सभी को वात नियंत्रित करता है । दूसरा है पित। पित्त आपके सूक्ष्म शरीर की ऊष्मा का नियंत्रण करता है। जहाँ जहाँ आपको गर्मी चाहिए, पाचन हो उसको पित नियंत्रित करता है। जो हम अनाज, फल, सब्जियां खाते है उनसे ऊर्जा का निर्माण करना तो इस प्रकार की जो क्रियाये है जहाँ पर तापमान तत्वों को नियंत्रित करना होता है उसको पित्त निर्देशित करता है। तीसरा है कफ । तीसरा दोष कफ हमारे अंदर स्थिरता और पोषण के लिए आवश्यक है और साथ में ये वात और पित इन दोनों को भी बैलेंस करता है। अब वात, पित्त और कफ को दोष क्यों बोला जाता है? क्योंकि अगर इनके बीच का जो संतुलन है अगर वो बिगड़ जाए तो आपके शरीर में रोग उत्पन्न होते हैं। इनको त्रिदोष बोला जाता है।

अगर ये चीजे आपको अच्छे से समझ आ जाती है तो रजस्वला परिचर्या में जो भी कार्य एक रजस्वला स्त्री को करने से मना किए गए हैं, उनके पीछे का विज्ञान भी समझ में आ जायेगा। अब जब एक स्त्री मासिक धर्म पर होती है तो उसके शरीर का वात और पित्त ये दोनों प्राकृतिक रूप से बढ़ जाते हैं। क्यों बढ़ जाते हैं? क्योंकि अब शरीर को एक नई गतिविधि को सँभालना होता है। इसमें वात्त क्यों बढ़ता है? क्योंकि वात्त जैसे बताया गति के लिए होता है इसके लिए स्त्री के शरीर के अंदर वात को बढ़ना पड़ता है इन क्रियायों में ऊर्जा की भी जरूरत होती है, इसलिए पित्त भी बढ़ जाता है। मासिक धर्म के दौरान जिससे आपका वात और पित्त डिस्टर्ब हो जाते हो, ऐसे सभी कार्यों को निषेध बताया गया है। जैसे कि मान लीजिए आप नहाते हैं, तो नहाने को वर्जित बताया गया है।

एक रजस्वला स्त्री को मासिक धर्म के दौरान क्यों नहीं नहाना चाहिए ?

मासिक धर्म के दौरान नहाना नहीं चाहिए क्योंकि पित्त प्राकृतिक रूप से बढ़ा हुआ है। आप नहाकर उसके विरुद्ध काम करेंगे। आप देखिये आपके घरों में भी जब आप खाना खाते हैं तो खाना खाने के तुरंत पश्चात नहाने से मना किया जाता है क्योंकि डाइजेशन के लिए पित्त बढ़ जाता है। आपका जो तापमान है, पाचन क्रिया के लिए बढ़ता है, इसलिए नहाकर उसके विरुद्ध नहीं जाना है।परिचर्या में मासिक धर्म के दौरान ऐसी बात लिखी गई है और इसीलिए ही मासिक धर्म के दौरान मेहंदी लगाने से भी मना किया जाता है। क्योंकि मेहंदी अपना एक ठंडा प्रभाव रखती हैं और आपके पित को डिस्टर्ब कर सकती है। इसलिए मेहंदी लगाने को भी मासिक धर्म के दौरान एक रजस्वला स्त्री को मना करते है।

बाल झाड़ने , नाख़ून काटने की मनाही क्यों ?

अब ज्यादा तेज से हंसना, ज़ोर, ज़ोर से बातें करना, शोर शराबे में रहना ये सब से वात असंतुलित होता है और वात का प्रकोप बढ़ जाता है। इसलिए उसको शांत जगह पर रहने को बोला जाता है अब बाल क्यों नहीं जाना झाड़ना चाहिए? क्यों नहीं नाखून काटना चाहिए? माताओं व बहनों ने अनुभव किया होगा की मासिक धर्म के दौरान बाल रूखे हो जाते हैं और झड़ने लगते हैं। इसलिए बाल को झड़ने से मना किया जाता है। ऐसा होता क्यों है ? ऐसा होता क्यों है क्योंकि जो वात दोष है वो आपके नाड़ी तंत्र और कंकाल प्रणाली को भी नियंत्रित करता है। जब वात्त आप में बढ़ जाता है तो हड्डियों की प्राकृतिक डेन्सिटी घट जाती है और वो नाज़ुक हो जाती है। इसलिए नाखून भी काटने से मना किया जाता है। ये वो समय होता है जब ज्यादा कार्य या किसी भी गतिविधि करने से मना किया जाता है। इस दौरान हड्डियों के नाजुक होने से चोट लगने का खतरा भी अधिक होता है। इसलिए आपको बाल झाड़ने और नाखून काटने से मना किया जाता है।

मासिक धर्म के दौरान मंदिर जाने से मना क्यों किया जाता है ?

अब इस लिस्ट में मंदिर ना जाना तो नहीं लिखा है, लेकिन इसके पीछे सामान्य ज्ञान है की अगर आप नहीं नहा रहे हैं तो आप किस प्रकार मंदिर जाएंगे या पूजा करेंगे ? तो ये एक कारण तो ये हो सकता है लेकिन मंदिर ना जाने के पीछे एक कारण और है। मंदिरों में भी ऊर्जा का संचार होता है और यह ऊर्जा तंत्र और आगम शास्त्रों में दिए गए चक्र विद्या के अनुसार प्रतिष्ठित की जाती है जो आपके अंदर के वात्त और पित के संतुलन को बिगाड़ सकती है। अगर आप वैसे भी देखे सामान्य दिनों में मंदिर होकर आये तो आपके अंदर एक स्पंदन महसूस होता है और अंदर हाइर स्टेट ऑफ कॉन्सियसनेस का अनुभव होता है। जिसके कारण उनको मासिक धर्म के समय पीड़ा न उठानी पड़े इसलिए मंदिर जाने से मना किया जाता है।

मासिक धर्म के दौरान बहुत से कार्य नहीं करने दिए जा रहे हैं तो इस समय क्या करना चाहिए ?

अब बहुत सी बहनों के मन में ये प्रश्न आ रहा होगा कि जब मासिक धर्म के दौरान उन्हें बहुत ढेर सारे कार्य नहीं करने दिए जा रहे हैं जैसे नहाने नहीं दिया जा रहा है, दिन में सोने नहीं दिया जा रहा है, बहुत तेजी से बातें नहीं करने दी जा रही है, मंदिर नहीं जाने दिया जा रहा है तो उन्हें करना क्या चाहिए? तो सनातन धर्म में मासिक धर्म के दौरान एक जगह पर मौन बैठकर साधना करने को सबसे ज्यादा महत्त्व दिया गया है और इसके पीछे भी कारण है क्योंकि अगर आप देखे तो जो स्त्री होती है जिसको मासिक धर्म होता है उसको रजस्वला स्त्री कहते हैं।रजस्वला का अर्थ होता है की जो रज है, जो राज गुण है, उसका जो हश्र हो रहा है। मतलब राजगुरु जो है वो स्त्री को छोड़ के जा रहा है। मासिक धर्म के समय पर अगर आपने प्रकृति के तीन गुणों सत, रज, तम के बारे में पढ़ा है तो आपने ये पढ़ा होगा कि जो रज है वो गतिविधि को निरूपित करती है। मतलब जितनी भी गतिविधियां होती है, उसको निरूपित करता है रज़ आपके शरीर से निकलता है तब रजस्वला स्त्री भारी महसूस करती हैं और अपने अंदर आलस्य और थकान को अनुभव करती है। अब ऐसे में आपके शरीर में सत और तम ये दो गुण बचते हैं और सनातन धर्म की अनुसंशा है की आप सद्गुण की तरफ बढ़े क्योंकि रज की अनुपस्थिति में आप बहुत आसानी से सत और तम किसी की तरफ जा सकती है।

शारीरिक विज्ञान के अनुरूप है बातें

विज्ञान में, मासिक धर्म का विस्तारित और व्यापक अध्ययन किया जाता है और इसके पीछे के विज्ञानिक कारणों को समझने के लिए विभिन्न शोध और अध्ययन हुए हैं। इस दौरान महिलाओं के शरीर में हार्मोनल परिवर्तन घटित होते हैं। मासिक धर्म के दौरान और उससे पहले शरीर में कई बदलाव होते हैं, जैसे कि शरीर के आंतरिक तंत्रिका व्यवस्था, रक्त संचार, हार्मोन निर्माण और दिलाने, उभयपादी जननांगों के पुनर्जन्मन, और अन्य संबंधित बाधाओं का प्रबंधन।

मासिक धर्म के दौरान साधना करने में आसानी होती है क्योंकि उसमें रज नही रहता है। ध्यान के दौरान किसी भी गतिविधियों को करना ध्यान में सबसे बड़ी बाधा उत्पन्न करता है। इसलिए आप अनुभव करें जब मासिक धर्म के दौरान मौन रहकर साधना करे तो आपका मन बहुत आसानी से लग जायेगा। रजस्वला होना स्त्रियों में श्राप न होकर एक वरदान ही है। ये साइंटिफिकली भी प्रूवन है क्योंकि अगर आप देखे तो जहाँ पुरुषों को शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए कड़ी मेहनत और साधना करनी पड़ती है। वहीं पर मासिक धर्म के दौरान स्त्रियों के जो बॉडी टॉक्सिन्स होते हैं आसानी से शरीर से निकल जाते हैं और यही वजह है कि स्त्रियां जो होती है वो पुरुषों से अधिक आयु तक जीती है । और स्त्रियों में जो हृदय आदि के रोग है वो पुरुषों की अपेक्षा कम होते हैं। मासिक धर्म, धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों दृष्टिकोण से यों के लिए वरदान ही है और इसी में अगर हमारी माताएं और बहनें रजस्वला परिचर्या का भी पालन कर लें तो उन्हें पीड़ा आदि से भी मुक्ति मिलेगी। क्योंकि आयुर्वेद में मासिक धर्म के दौरान होने वाली पीड़ा को सामान्य नहीं माना गया है। वहाँ पर ये बताया गया है कि अगर आपके त्रिदोष जो है वात्त, पित्त और कफ ये तीनों संतुलित होंगे तो आपको पीड़ा बिल्कुल भी नहीं होगी।

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