नवरात्र में व्रत और कुमारी कन्याओं के पूजन का विशेष महत्व है । भारतवर्ष में नवरात्रि के दिन लगभग हर घरों में इस दिन कन्याओं को भोजन करवाया जाता है और उन्हें उपहार स्वरूप कुछ चीजें भेंट की जाती है। कहीं 9 कन्याओं को एकसाथ भोजन करवाया जाता है तो कहीं रोजाना 9 कन्याओं या 1 कन्या को रोज भोजन करवाया जाता है। इस दौरान हम कई प्रश्नों से अनजान रह जाते है कि किस वर्ष तक कि कन्या का पूजन करें ? और कितनी कन्याओं को भोजन करवाया जाना चाहिए ? तथा किस वर्ष की कन्या किस देवी का रूप मानी गई है ? तो आइए जानते है श्रीमद्देवी भागवत महापुराण में नवरात्र में कुमारी कन्याओं के पूजन का महत्व क्या बताया हुआ है और कितनी संख्या में कन्याओं को भोजन करवाया जाता है।
क्या कहा गया है श्रीमद्देवी भागवत महापुराण में
श्रीमद्देवी भागवत महापुराण में व्यास जी कुमारी पूजा में प्रशस्त कन्याओं का वर्णन करते हुए बताते हैं कि नित्य एक ही कुमारी का पूजन करना चाहिए या प्रतिदिन एक-एक कुमारी की संख्या के वृद्धि क्रम से पूजा करनी चाहिए अथवा प्रतिदिन दुगुने-तिगुणे के वृद्धि क्रम से पूजन करना चाहिए या तो प्रत्येक दिन 9 कुमारी कन्याओं का पूजन करें अथवा अपने धन-धान्य सामर्थ्य के अनुसार भगवती की पूजा करें ।
हर वर्ष की कन्या पूजन का अलग महत्व
कन्याओं की पूजा विधि में 1 वर्ष की अवस्था वाली कन्या नहीं होनी चाहिए क्योंकि वह कन्या गंध और भोग आदि के पदार्थों के स्वाद से बिल्कुल अनभिज्ञ रहती है इसलिए कुमारी कन्या वह कही गई है जो 2 वर्ष की हो चुकी हो ‘कुमारी’ नाम की कन्या पूजित होकर दुःख तथा दरिद्रता का नाश तथा शत्रुओं का क्षय करती है, धन आयु तथा बल की वृद्धि करती हैं।
तीन वर्ष की कन्या कहलाती है ‘त्रिमूर्ति’
3 वर्ष की कन्या को त्रिमूर्ति कहा जाता है ‘त्रिमूर्ति’ नाम की कन्या का पूजन करने से धर्म- अर्थ- काम की पूर्ति होती है धन-धान्य का आगम होता है और पुत्र-पौत्र आदि की वृद्धि होती है ।
चार वर्ष की कन्या को कहा जाता है ‘कल्याणी’
4 वर्ष की कन्या को कल्याणी कहा गया है। जो विद्या- विजय – राज्य तथा सुख की कामना करता हो उसे सभी कामनाएं प्रदान करने वाली ‘कल्याणी’ नामक कन्या का नित्य पूजन करना चाहिए।
पांच वर्ष की कन्या ‘रोहिणी’ तथा 6 वर्ष की कन्या ‘कालिका’
5 वर्ष की कन्या को रोहिणी तथा 6 वर्ष की कन्या कालिका कहलाई जाती है। शत्रुओं का नाश करने के लिए भक्तिपूर्वक ‘कालिका’ कन्या का पूजन करना चाहिए।
सात वर्ष की कन्या कहलाई जाती है ‘चण्डिका’ देवी
चण्डिका कहलाई जाने वाली 7 वर्ष की कन्या का पूजन धन तथा ऐश्वर्य की अभिलाषा रखने वाले को इनकी सम्यक अर्चना करनी चाहिए।
आठ वर्ष की कन्या ‘शाम्भवी’
सम्मोहन, दुःख – दरिद्रता के नाश तथा संग्राम में विजय के लिए 8 वर्ष की ‘शाम्भवी’ कन्या का पूजन करना चाहिए।
नौ वर्ष की कन्या ‘दुर्गा’ तथा दस वर्ष की कन्या ‘सुभद्रा’
नौ वर्ष की कन्या ‘दुर्गा’ तथा 10 वर्ष की कन्या ‘सुभद्रा’ कहलाती है। क्रूर शत्रु के विनाश एवं उग्र कर्म की साधना के निमित्त और परलोक में सुख पाने के लिए ‘दुर्गा’ नामक कन्या की भक्ति पूर्वक आराधना करनी चाहिए तथा मनुष्य अपने मनोरथ की सिद्धि के लिए ‘सुभद्रा’ की सदा पूजा करें और रोग नाश के लिए नियमित रोहिणी की विधिवत आराधना करें।
नवरात्रि में इन नौ कन्याओं के पूजन से प्राप्त होने वाले फल भी अलग-अलग होते हैं इन नामों से कुमारी का विधिवत पूजन सदा करना चाहिए। ‘श्रीरस्तु’ इस मंत्र से अथवा किन्ही भी श्रीयुक्त देवीमंत्र से अथवा बीजमंत्र से भक्तिपूर्वक भगवती की पूजा करनी चाहिए।
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