श्री राम ने भी किया था नवरात्रा में नौ दिन देवी का व्रत

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नवरात्र में व्रत के महत्व का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है स्वयं भगवान श्री राम ने भी पूरे 9 दिन देवी का विधिपूर्वक व्रत और पूजन किया था। भगवान श्री राम और लक्ष्मण वनवास के दौरान सीता माता के हरण हो जाने की बात से बहुत चिंतित थे। श्री राम और लक्ष्मण परस्पर परामर्श कर ही रहे थे कि आकाश मार्ग से देवऋषि नारद मुनि वहाँ पहुँचे।

जब व्याकुल हुए राम

 

चिंतित और व्याकुल हुए श्री राम को देख नारद मुनि ने आप सीता की चिंता बिल्कुल ना करें वे तो स्वयं माता लक्ष्मी है और आपके ध्यान में लगी है। आपका जन्म ही रावण के निधन के लिए हुआ है। हे राघवेंद्र मैं आपको उस रावण के नाश का उपाय बताता हूं अब आप आश्विन मास में श्रद्धापूर्वक नवरात्र व्रत कीजिये। नवरात्र में उपवास तथा जप-होम के विधान से किया गया पूजन सिद्धियों को प्रदान करने वाला है। देवी माँ को प्रशन्न कर आप पूर्ण शक्तिशाली बन जाएंगे। पूर्वकाल में भगवान विष्णु, शिव, ब्रह्मा तथा स्वर्गलोक में विराजमान इंद्र ने भी इसका अनुष्ठान किया था।

श्री राम ने किया नवरात्र में अनुष्ठान

भगवान श्रीराम ने नारद मुनि जी की बातें बड़े ही निर्मल भाव से सुनी और उनके द्वारा बताए गए विधिवत होम, बलिदान और पूजन किया। राम और लक्ष्मण दोनों भाइयों ने नारद जी के द्वारा बताए गए इस व्रत को प्रेम पूर्वक संपन्न किया और अष्टमी की मध्यरात्रि की वेला में भगवती दुर्गा ने सिंह पर सवार होकर उन्हें साक्षात दर्शन दिए।

देवी माँ से मिला वरदान

मां दुर्गा ने श्री राम से कहा हे नरोत्तम! देवताओं के अंश से उत्पन्न परम बलशाली वानर मेरी शक्ति से संपन्न होकर आपके कार्य में सहायक होंगे । शेषनाग के अंश स्वरूप आपके यह अनुज लक्ष्मण रावण के पुत्र मेघनाथ का वध करने वाले होंगे । वसंत ऋतु के नवरात्र में आप परम श्रद्धा के साथ पुनः पूजा कीजिए तत्पश्चात पापी रावण का वध करके आप सुख पूर्वक राज्य करेंगे। हे रघुश्रेष्ठ इस प्रकार 11000 वर्षों तक भूतल पर राज्य करके पुनः आप लोग के लिए प्रस्थान करेंगे।

 

श्री राम की रावण पर विजय

रावण पर विजय मां दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त कर श्री रामचंद्र जी ने प्रसन्न मन से उस व्रत का समापन किया । दशमी तिथि को विजया पूजन करके तथा अनेक दान देकर वहां से प्रस्थान कर दिया। वानर राज सुग्रीव की सेना के साथ अपने अनुज सहित लक्ष्मीपति श्री राम साक्षात परम शक्ति की प्रेरणा से समुद्र तट पर पहुंचे वहां सेतु बंधन करके उन्होंने देव शत्रु रावण का संहार किया। इस प्रकार जो मनुष्य भक्ति पूर्वक देवी के उत्तम चरित्र का श्रवण करता है वह अनेक सुखों का उपभोग कर के परम पद प्राप्त कर लेता है।

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