जाने बड़ी तीज का क्या है विधि विधान और तीज की कथा

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कजली तीज :-

यह व्रत भाद्रपद कृष्ण तृतीया को मनाया जाता है। इस दिन जौ, गेहूँ, चने और चावल के सत्तू में घी, मीठा और मेवा डालकर उसके पदार्थ बनाते और चन्द्रोदय के बाद उसी का एक बार भोजन करते हैं। इस कारण यह व्रत ‘सातूडी तीज’ अथवा ‘सतवा तीज’ कहलाता है।कजली तीज को श्रावणी तीज के नाम से भी जाना जाता है।

इस दिन स्त्रियाँ रात-भर कजली गाती और नाचती हैं।सावन के तीसरे दिन अर्थात श्रावण कृष्ण तृतीया विशेष फलदायी होती है क्योंकि यह तिथि माता पार्वती को समर्पित है। इस दिन भगवान शंकर तथा माता पार्वती के मंदिर में जाकर उन्हें भोग लगाने तथा विधि-विधान पूर्वक पूजा करने से सभी सुखों की प्राप्ति होती है। 7 दिन तक लाल वस्त्र दान करने से भगवान शिव व पार्वती प्रसन्न होते है।
कजली तीज को मानाने का विधान :-

यह त्यौहार सौभाग्यवती स्त्रिया अपने अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए एवम कुंवारी कन्याए सुयोग्य वर की प्राप्ति के लिए करती है।  इस त्योहार के एक दिन पूर्व अपने हाथो में मेहँदी लगते हुए अखंड सौभाग्य के गीत गाती है। तीज के दिन प्रात : काल सभी स्त्रिया एवम कन्याए जल्दी उठकर कलेवा करती है। जिसे लोकभाषा में धमोली कहते है। तीज के दिन प्रात : काल उठने के बाद सभी स्त्रिया पुरे दिन निर्जल उपवास रखती है सभी पेड़ो पर श्रावण के झूले- झूलते हुए श्रावण मास के गीत गाती है।  सांय कल सुर्यास्त के पश्चात् स्नानादि कर एवम सौलह श्रंगार कर स्त्रिया शिव – गौरी की पूजा  मन्दिर जाती है एवम गौरी माता से विधि विधान से पूजन करने के पश्चात् अखंड सुहाग और सुयोग्य वर की कामना करती है। चन्द्रोदय के पश्चात स्त्रिया चंद्रमा की पूजा करके अपना व्रत तोडती है इस व्रत में चने,  चावल एवम गेँहू के बने सत्तू मत गौरी को भोग लगाये जाते है।  तत्पश्चात उन्ही सत्तुओ से स्त्रिया अपना व्रत खोलती है।
कजली तीज व्रत कथा :-

एक बार भगवान शंकर ने पार्वती जी से कहा- एक बार ज तुमने हिमालय पर्वत पर जाकर गंगा के किनारे, मुझे पति रुप में प्राप्त करने के लिये कठिन तपस्या की थी. उसी घोर तपस्या के समय नारद जी हिमालय के पास गये तथा कहा की विष्णु भगवान भगवान आपकी कन्या के साथ विवाह करना चाहते है. इस कार्य के लिये मुझे भेजा है.

नारद की इस बनावटी बात को तुम्हारे पिता ने स्वीकार कर लिया, तत्पश्चात नारद जी विष्णु के पास गये और कहा कि आपका विवाह हिमालय ने पार्वती के साथ करने का निश्चय कर लिया है. आप इसकी स्वीकृ्ति दें. नारद जी के जाने के पश्चात पिता हिमालय ने तुम्हारा विवाह भगवान विष्णु के साथ तय कर दिया है.

यह जानकर तुम्हें, अत्यंत दु:ख हुआ. और तुम जोर-जोर से विलाप करने लगी. एक सखी के साथ विलाप का कारण पूछने पर तुमने सारा वृ्तांत कह सुनाया कि मैं भगवान शंकर के साथ विवाह करने के लिए कठिन तपस्या प्रारक्भ कर रही हूं, उधर हमारे पिता भगवान विष्णु के साथ संबन्ध तय करना चाहते है. मेरी कुछ सहायता करों, अन्यथा मैं प्राण त्याग दूंगी.

सखी ने सांत्वना देते हुए कहा -मैं तुम्हें ऎसे वन में ले चलूंगी की तुम्हारे पिता को पता न चलेगा. इस प्रकार तुम सखी सम्मति से घने जंगल में गई. इधर तुम्हारे पिता हिमालय ने घर में इधर-उधर खोजने पर जब तुम्हें न पाया तो बहुत चिंतित हुए क्योकि नारद से विष्णु के साथ विवाह करने की बात वो मान गये थे.

वचन भंग की चिन्ता नें उन्हें मूर्छित कर दिया. तब यह तथ्य जानकर तुम्हारी खोज में लग गयें. इधर सखी सहित तुम सरिता किनारे की एक गुफा में मेरे नाम की तपस्या कर रही थी. भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृ्तिया तिथि का उपवास रहकर तुमने शिवलिंग पूजन तथा रात्रि जागरण भी किया.

इससे मुझे तुरन्त तुम्हारे पूजर स्थल पर आना पडा. तुम्हारी मांग और इच्छा के अनुसार तुम्हें, अर्धांगिनी रुप में स्वीकार करना पडा. प्रात:बेला में जब तुम पूजन सामग्री नदी में छोड रही थी तो उसी समय हिमालय राज उस स्थान पर पहुंच गयें. वे तुम दोनों को देखकर पूछने लगे कि बेटी तुम यहां कैसे आ गई. तब तुमने विष्णु विवाह वाली कथा सुना दी.

यह सुनकर वे तुम्हें लेकर घर आयें और शास्त्र विधि से तुम्हारा विवाह मेरे साथ कर दिया. उस दिन जो भी स्त्री इस व्रत को परम श्रद्वा से करेगी, उसे तुम्हारे समान ही अचल सुहाग मिलेगा.

 

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