बीकानेर का शहर परकोटा वीरों और योद्धाओं का क्षेत्र है, ऐसे बहुत से उदाहरण मिलते है जब यहाँ के लोगों ने अपनी आन बान शान और समाज के लिये अपनी जान न्यौछावर कर दी। कई तो ऐसे भी हुवे है जिनकी गर्दन धड़ से अलग हो गई, फिर भी वे शांत नहीं हुवे और तलवार घुमाते हुवे लड़ते रहे। व्यास जाति के एक वीर ने वर्षो पहले किसी लड़ाई में गर्दन धड़ से अलग होने पर भी अपने दुश्मनों से लड़ते रहे, क्रोध इतना था कि उनकी तलवार चलती रही।

जानकार लोगों ने उनको शांत किया तब उनके हाथ से तलवार छूटी और उनके प्राण छूटे। जिस स्थान पर प्राण छोड़े वो स्थान है बारह गुवाड़ चौक। चौक के जबरेश्वर महादेव मंदिर में अनघड़ मूर्ति जुझार भैरव के रूप में है, जो साल में एक बार मन्दिर के पास बनी चौकी पर विराजित की जाती है, ये चौकी पूर्व में कच्ची थी जो गोपिया बाबा के समय पक्की बनी। वर्षो पहले चौक के इसी स्थान पर बड़ा यज्ञ हुवा था।

जुझार, जुझार भैरव व लौंदा बाबा के नाम से पूजित इस अनघड़ मूर्ती को अक्षय तृतीया की शाम मन्दिर के पुजारी, मंदिर से बाहर लाकर चौकी पर विराजित करते है। इस दिन शहर के लालाणी व कीकाणी व्यास के लोग विशेष रूप से पूजा अर्चना करते है। अपने पुत्र की शादी व वंश वृद्दि होंने पर नव विवाहितों की तथा नवजात पुत्र सन्तान की यहां धोक लगाते है तथा गुड़ आटे का कसार हलवा थाली में जमाकर लाते है जो प्रशाद के रूप में चढ़ता है। बाद में बहन , भुआ या सुहासिनी अँगल मङ्गल करती है।

मान्यता है कि जुझारजी की इस पूजा अर्चना फेरी और धोक लगाने से जुझारजी प्रसन्न होते है और और वंश वृद्धि करते तथा परिवार की रक्षा करते है।
(रमक झमक ऐसे अन्य जुझारजी के बारे में भी जानकारी आप तक शीघ्र लाएगा तथा क्या चढ़ाने से क्या फल मिलता है बताएगा।)