तुलसी माता का व्रत कैसे करें, अखंड दीपक मुहूर्त व उद्धापन की जानकारी

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आंवला नवमी से शुरू होने वाला 3 दिनों का तुलसी माता व्रत समस्त पापो को नष्ट करके विष्णुलोक की प्राप्ति कराने वाला है। इस व्रत को करने से सारे पाप खत्म हो जाते है। एक बार धर्मराज युधिष्ठिर के पूछने पर भगवान श्रीकृष्ण ने बताया कि सतयुग में मुनि वशिष्ठ के निर्देश के अनुसार सर्वप्रथम इस व्रत को अरूंधत्ति ने किया था। इसी प्रकार देवलोक में ब्रह्मा जी के कहने पर सावित्री और इंद्राणी द्वारा इस व्रत को किया गया था।

कब किया जाता है तुलसी माता का व्रत

कार्तिक शुक्ल नवमीं से एकादशी तक तीन दिवस तक निराहार रहकर द्वादशी को पारणा करना किया जाता है। व्रत प्रारम्भ करते समय तिथियों की ह्रास वृद्धि न हो एवं सुवा-सूतक न हो यह ध्यान रखना चाहिए। व्रत करने वाली स्त्री रजस्वला न हो तब व्रत शुरू करना श्रेष्ठ होता है। यह तीन दिवसीय व्रत स्त्रियां अपने सुख सौभाग्य के लिये करती है। इस व्रत को तीन बार करने का विधान माना गया है। कुँवारी लड़कियां अच्छे पति व सौभाग्य के लिये इस व्रत को प्रारम्भ कर सकती है परंतु उद्यापन विवाह उपरांत ही किया जाना चाहिए।

इस व्रत में निराहार रहकर तीन दिनों तक तुलसी माता का पूजन भगवान दामोदर (शालिग्राम) के साथ किया जाता है। इस व्रत के करने से भगवान की प्रसन्नता के साथ सुख व संतान की सिद्धि एवं अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

तीन बाट का तुलसी माता अखंड दीप

लोकाचार के अनुसार नवमीं और दशमी का दिन ठीक से व्यतीत हो जाये तो दशमी के दिन सायंकाल को व्रतबंधन करके अखण्डदीप स्थापित करना चाहिए। घी और तेल के 2 पृथक-पृथक दीपक मौली और सुत मिलाकर तीन तार की बत्ती ( बाट ) बनाकर प्रज्वलित करना चाहिए। तीन तार की बत्ती ( बाट ) में एक तार स्वयं का दूसरा पति के निमित और तीसरी भगवान के लिए होती है। नीम की डंडी में बत्ती ( बाट ) लपेटी जाती है, नीम की डंडी पर लपेटने से आरोग्यता के साथ व्रत का सामर्थ्य व शक्ति बना रहता है। आजकल दीप में लोहे की मोटी कील डाली जाती है, कील डालने का रहस्य यह है कि कील के गर्म रहने से घी भी गर्म रहता है।

तुलसी चरणामृत से व्रत खोलना

प्रत्येक दिन तुलसी माता पूजन के साथ कथा श्रवण करना चाहिये। व्रत के दिनों में जुटे चप्पल नही पहनना चाहिए व रात को भूमि पर ही बिस्तर लगाकर सोना चाहिए। द्वादशी के दिन सर्वप्रथम अपने गुरु अथवा ब्राह्मण को प्रातः समय घर बुलाकर पैर धोकर तथा भोजन करवाकर वस्त्र एवं दक्षिणा आदि से संतुष्ट करना चाहिए। इसके पश्चात फिर तुलसी सहित भगवान के चरणामृत से व्रत खोलना चाहिए। अतः ध्यान रखें कि तीन दिनों तक व्रत के रहते जल पीते समय तुलसी भी ग्रहण नहीं करनी चाहिए इससे व्रत खण्डित होता है।

विवाह के पश्चात उद्यापन

व्रती के परिवार जन दशमी के दिन दीपदर्शन करके व्रती को रुपये भेंट करते है। दशमी के दिन ही गुड़ , गेहूँ और घी का दान संकल्प करके इन वस्तुओं को अखण्ड दीपक के पास रख देना चाहिए तथा व्रत पूर्ण होने पर दक्षिणा सहित दान करना चाहिए। विवाह के पश्चात उद्यापन के समय तुलसी विवाह से पहले इस व्रत का विधि विधान से उद्यापन करना चाहिए।

दीपक मुहूर्त:-

इस बार तुलसी माता व्रत प्रारम्भ 23 तारीख 2020 सोमवार को होगा। इस दिन नवमी को मानसी संकल्प के साथ व्रत प्रारम्भ करके दशमी को 3:05 pm से 4:22 pm अथवा 7:20 pm से 9:00 बजे तक गणेश पूजा के साथ अखण्ड दीप की स्थापना करनी चाहिए।

पं अशोक कुमारओझा (राजा)
ज्योतिषाचार्य एवं पंचागकर्ता

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