गणगौर में बाली गवर का पूजन करने वाली लड़किया दोपहर को दातनिया देती है और शाम को घुड़ला लेकर मोहल्ले में घर घर जाती है और गीत गाती है- ‘ म्हारो तेल बले घी घायल की घुड़लो घूमे ला जी घूमे ला’ कटे हुए सर का प्रतीक माने जाने वाला घुड़ला इसके क्या कारण जानिये इस वीडियो में
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क्यों शुरू हुई घुड़ला प्रथा जाने इसके पीछे की ऐतिहासिक घटना
गणगौर के दिनों में शाम के वक्त गली मौहल्ले मे घुड़ला घुमाने की प्रथा चली आ रही हैं जिसे कुंवारी कन्याऐं जो गवर पूजती हैं वो शाम के वक्त एक मिट्टी के बर्तन मे दिपक जलाकर गीत गाती हुई चलती है । इसके बारे मे विस्तृत रूप मे पहले बताया जा चुका हैं । यह परम्परा क्यों चालू हुई इसके पीछे भी एक ऐतिहासिक घटना है जिसका उल्लेख कई किताबों कहानियों मे मिलता हैं । बात लगभग 500 वर्ष पूर्व अजमेर के सूबेदार के सैनिकों ने कोसाणा गांव (जोधपुर) की…
Read Moreम्हारौ तेल बलै घी घाल, घुडलो घुमे छै जी घुमै छै
गणगौर के दिनों में शीतला अष्टमी से शुरू होकर तीज तक गली गुवाड़ मे अविवाहित कन्याओं को घुड़ला लेकर घुमते हुए देखा जा सकता हैं । घुड़ला एक मिट्टी से बना बर्तन एक गले की तरह होता हैं जिसके अंदर मिट्टी बिछाई हुई रहती है और घी या तेल का दिपक जलाया जाता है । गणगौर के 7 दिन बाद से ही ऐसा नजारा देखा जा सकता हैं कि गवर पूजने वाली कन्याऐं शाम के वक्त घुड़ला लेकर निकलती हैं और आस-पास पड़ोस के घरों के आगे जाकर यह गीत…
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