धींगा गवरजा की कहानी ( मोम की गुडीया ) कैलाश पर्वत पर शिव – पार्वती बैठा था चैत्र माह शुरु होते ही ” गवरजा ” रा ” बालीकाओं कन्याओं ” द्वारा पूजण शुरु हो गया । पार्वती शिवजी सू बोली कि मैं भी म्हारे पिहर जावणो चाहू , आप हुकम करो तो । महादेव जी बोल्या , म्हारी भांग घोटण री व्यवस्था कूण करसी जने पार्वती व्यवस्था रे रूप में एक मोम री गुडिया बनाई और आपरी शक्ति सू उसमें जीव डाल दिया , बा चेतन हो गई पार्वती बे…
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बेंत (डंडा) मार मेला, बेंत पड़ी तो ब्याव पक्का
भारत परम्पराओं व मान्यताओं को मानने वाला देश है । कई तरह की मान्यताएं यहाँ प्रचलित हैं। यूं कहे कि दुनिया में सबसे ज्यादा मान्यताएं हमारे देश में ही हैं तो ये गलत नहीं होगा। आज हम आपको राजस्थान के मारवाड़ प्रांत खासकर सूर्य नगरी जोधपुर में मनाएं जाने वाले एक खास मेले के बारे में बताने जा रहे हैं। जोधपुर अपनी मान्यताओं, परम्पराओं व सास्कृतिक विरासत के लिये प्रशिद्ध है । मेले मगरियो का शहर जोधपुर में एक ऐसा मेला लगता है जिसमें लड़कियां पूरी रात गली मोहल्लों में…
Read Moreदेखिये जूनागढ़ के अंदर से कैसे निकलती है सजी धजी गणगौर माता
देखिये जूनागढ़ के अंदर से कैसे निकलती है सजी धजी गणगौर माता राज परिवार के साथ बैंड बाजे और सैनिक होते है और गवरजा माता गहनों से लदी होती है यहाँ दौड़ते हुए ले जाते है गणगौर को क्या है वास्तिव परम्परा पूरा जानिये इस वीडियो में
Read Moreघुड़ला और दातनिया देना क्या है, कटे हुए सर का प्रतीक क्यों है
गणगौर में बाली गवर का पूजन करने वाली लड़किया दोपहर को दातनिया देती है और शाम को घुड़ला लेकर मोहल्ले में घर घर जाती है और गीत गाती है- ‘ म्हारो तेल बले घी घायल की घुड़लो घूमे ला जी घूमे ला’ कटे हुए सर का प्रतीक माने जाने वाला घुड़ला इसके क्या कारण जानिये इस वीडियो में
Read Moreमाता ए थारे टाबरियों ने अम्मी भर छाटो घाले
बीकानेर में बारह मासा गणगौर का मेला भरा गया और कल बारह मासा गणगौर को चोतिना कुआ पर पानी पिलाने व जूनागढ़ में खोल भारी रस्म के साथ बारह मासा गणगौर को विदाई दी जाएगी । इससे पूर्व शहर भर में गणगौर को घुमाया जायेगा लोग अपनी अपनी गणगौर की मूर्तियों को लेकर सगे सबंधियो के यहाँ जायेंगे । आज शहर के कई चौक और मोहलों में शाम को गणगौर बैठी । बारह गुवाड़ चौक में इश्वर महाराज छंगाणी की मिटटी कुट्टी की बनी गवरजा के दर्शन करने वालों व…
Read Moreम्हारौ तेल बलै घी घाल, घुडलो घुमे छै जी घुमै छै
गणगौर के दिनों में शीतला अष्टमी से शुरू होकर तीज तक गली गुवाड़ मे अविवाहित कन्याओं को घुड़ला लेकर घुमते हुए देखा जा सकता हैं । घुड़ला एक मिट्टी से बना बर्तन एक गले की तरह होता हैं जिसके अंदर मिट्टी बिछाई हुई रहती है और घी या तेल का दिपक जलाया जाता है । गणगौर के 7 दिन बाद से ही ऐसा नजारा देखा जा सकता हैं कि गवर पूजने वाली कन्याऐं शाम के वक्त घुड़ला लेकर निकलती हैं और आस-पास पड़ोस के घरों के आगे जाकर यह गीत…
Read Moreजाने राजस्थान के लोकप्रिय त्यौहार गणगौर के बारे में
गणगौर राजस्थान के सबसे लोकप्रिय त्यौहारों मे से एक है । गणगौर का त्यौहार होली के अगले दिन ही यानि चैत्र की एकम से शुरू हो जाता हैं और अमावस्या के बाद की तीज तक मनाया जाता हैं । गणगौर मे गवर और इश्वर जी को पूजा जाता हैं । इस पूजा मे गवर यानि माता गौरी का रूप और इश्वर जी यानि भगवान शिव का रूप माना गया हैं । तीज तक चलने वाले इस त्यौहार मे यह माना जाता है कि हर वर्ष 16 दिन के लिए गवर…
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