होली दहन के बाद प्रथम रविवार को सूरज रोटे का व्रत होता है। भगवान सूर्य के लिये गेहूं के आटा से करीब 1 इंच मोटाई की रोटी हाथ से थप थपा कर बनाई जाती है जिसके सेंटर में एक छेद रख दिया जाकर पकाई/सेकी जाती है।
महिलाएं ये रोटा लेकर घर की छत या आंगन में जहां सूर्य अच्छे से दिखाई पड़ता है वहाँ से समूह के रूप में एकत्रित होकर अपना अपना रोटा लेकर उसमें से भगवान सूर्य के दर्शन करती है और अर्घ्य देती है। जब रोटे के बीच छेद से सूर्य के दर्शन करती है तो पास खड़ी औरत
पूछती है सखी सखी में सूरज दिख्यो ? जवाब में बोलती है दिख्यो ज्योहीं टुठ्यो, इस प्रकार सास ससुर रिश्तेदारों व गहनों आदि का नाम लिया जाता है।
सूरज रोटे की कहानी :-
दो माँ बेटी थी, दोनुं जण्या सूरज भगवान को व्रत करती, एक दिन माँ बोली कि में बारे जांउ तुं दो रोटा पो लिये बेटी दो रोटा पो लिया, एक जोगी भिक्षा मांग न आयो बा भिक्षा देवण लागी तो ली कोनी के मे तो रोटो लेवुं, बिरो रोटो सिक्यो कोनी, सो बा माँ के रोटे में से कोर तोड के दे दी माँ आई रोटे की कोर टुटयोडी देकर केवण लागी घी रोटे घी रोटे री कोर ला म्हारे सागी रोटे री कोर केवती-केवती गांव में फिरण लागगी बेटी डर के मारे पीपल के झाड पर चढर बेठगी चार-पाँच दिन हुं, गया सुरज भगवान ने दया आयी सुरज भगवान पाणी रो लोटो चुरमेरी बाटकी उण ने भेज दी, एक दिन राजा रो कंवर शिकार करण ने आयो और पीपल री ठण्डी छाया है, कोई ठण्डो पाणी पिवण ने देवे तो चोखो हुवे जणा बा छोरी उपरसू पाणी नाख्यो जणा पाछो राजा रो कंवर बोल्यो म्हने तो घणी भूख लागी है कोई खावण ने दे देवे तो चोखो हुवे, जणा बा छोरी उपरस्युं लाडु नाख्यो। राजा रे कंवर री भूख मिट गई कंवर खुद चढकर पते पते में देखण लाग्यो तो बिने दिखी बो बोल्यो कि तु कुण है भूत है कि प्रेत है, देवता है कि मानव है, जणा छोरी बोली म्हे मानव हूँ राजा रो कवंर छोरी ने पूछण लाग्यो कि तुं म्हारे सागे ब्याव करे कांई छोरी बोली राजाजी थे नगरी रा राजा म्हे एक अनाथ छोरी म्हारो तो कोई कोनी राजाजी मान्यो कोनी पडितान बुलाकर पिपल रे पेड रे नीचे फेरा फिरा कर ब्याव करके घरां गयो सुख से रेवण लागगा एक दिन बिकी माँ घी रोटी घी रोटी री कोर ला म्हारे सागी रोटे री कोर, करती करती जावे ही बेटी रुपर स्यूं देखली सिपाइया ने भेजर माँ न पकडकर एक कमरे मे बदं कर दी एक दिन राजाजी सगला कमरा री चाबी मांगी, या छ कमरा री चाबी तो दे दी सातवा कमरा री चाबी दी कोनी राजाजी हट करके सातवा कमरा री चाबी दी कोनी
राजाजी हट करके सातवा कमरा री चोबी ले ली कमरो खोल कर देखे तो आगे सोना री शिला पडी है राजाजी राणी ने पुछयो राणीजी ओ कांई राणी बोली म्हारे दुबला पोहर री भेंट है राजाजी बोल्या मने थारो पीयर देखणो है। राणी बोली राजाजी म्हारे कठे पीयर हे थे तो म्हाने पीपल के झाड के नीचे सुं लाया राजा जी हट करके बैठ गया जणा राणी सुरज भगवान सुं विनंती करी ओर सवा दिन को पीयर माग्यों। सूरज भगवान सपना में आपने राणी ने सवा पोर को पीयर बासो पीपल के झाड के नीचे दिया। राजा राणी, राणी रे पीयर गया सगला घणो ही लाड कोड करिया राजाजी ने धणो ही आनन्द हुयो राणी तो घरा चालण रो केवण लागी जणा राजा कियो कि इतो चोखो सांसरो है म्हे तो अठे रस्युं राणी हट करण लागगी, राजा राणी सीख भेर निकल्या, राजाजी आपरी पगारी मोचडी और घोडी रो ताजनो बठे ही भूल गया थोडा आगे गया जद ब्याने याद आयी, राजाजी पाछा फिरया जार देखे तो झाड रे नीचे मोचडी ओर घोडी रो ताजनो पडयो हो बाकी कुछ भी कोनी जणे राजाजी कियो राणी ओ कोई, जणा राणीजी बोली म्हारे पीर कोनी थो, सो में सुरज भगवान कने सवा पोर को पीर वासो मांग्यो म्हारी माँ रोटो खांडो हुयो जिके सुं गेली हुयगी वा नगरी में आयी ही, जणा म्हे उणाने कमरे में बंद कर दी उरी सोनारी शिला हुयगी, या सुण के राजा नगरी मेें ढिढोरो पिटवा दिया कि सगला कोई सुरज रोटे रो व्रत करियो, हे सुरज भगवान जिसो बिने पीर बासो दिया बिसो सबने दिया, कहत सुणत हुंकारा भरत आपणे सारे परिवार ने दिया म्हाने भी दिया।
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