‘सावा संस्कृति का सम्मान’ कार्यक्रम मे हुआ रोबीलों का सम्मान

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सावा संस्कृति का सम्मान

कार्यक्रम मे हुआ रोबीलों का सम्मान

बीकानेर, 8 जनवरी। रमक-झमक संस्था द्वारा रविवार को बारहगुवाड़ में ‘सावा संस्कृति का सम्मान’ कार्यक्रम आयोजित किया गया। शहर की लोक एवं पुष्करणा सावा संस्कृति को बढ़ावा देने वाले रोबीलों एवं शंखवादक का अभिनंदन किया गया।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि बार एसोशिएसन के अध्यक्ष कमल नारायण पुरोहित ने कहा कि रोबीलों ने बीकानेर की संस्कृति को देश और दुनिया में विशिष्ठ पहचान दिलाई है। ऊँट उत्सव के अलावा पुष्करणा समाज की सावा संस्कृति एवं पारम्परिक कार्यक्रमों में इनकी प्रभावी भूमिका रहती है। सावा देखने आने वाले देश व विदेश के पर्यटको का ये आकर्षण केंद्र रहते है । एसबीबीजे की अम्बेडकर शाखा के प्रबंधक एस एन जोशी ने कहा कि पुष्करणा ब्राह्मण समाज के सावे की परम्पराएं पूरे विश्व में विशिष्ठ स्थान रखती है। यह बीकानेर की गंगा-जमुनी संस्कृति को साकार करती हैं। जोशी ने कहा कि विमुद्रीकरण के दौर मे सावा कि महता और बढ़ जाती है क्यूकि मितव्यवता और सादगी ही सावा का मुख्य आधार है ।

चिकित्सा विभाग के उपनिदेशक डॉ राहुल हर्ष ने कहा कि ओलंपिक सावा सबको एक सूत्र मे बांधता है व फिजूल खर्च को मिटाता है। अधिवक्ता ओम भादाणी ने कहा कि रमक-झमक द्वारा इन कलाकारों का सम्मान करना अनुकरणीय है। भादानी ने कहा कि सावा मे शंख ध्वनि का आध्यात्मिक व सामाजिक महत्व है और शंखनाद करने वाले ‘मामा’ का सम्मान करना हमारे गौरव को बढ़ाता है। उन्होने संस्था द्वारा सावे की परम्पराओं को अक्षुण्ण रखने के लिए किए जा रहे प्रयासों को सराहनीय बताया। रमक-झमक द्वारा समाज को एक सूत्र में पिरोने का कार्य किया जा रहा है।

कोटगेट थानाधिकारी सुरेश शर्मा ने कहा कि बीकानेर का साम्प्रदायिक सौहार्द और आपसी प्रेम एक मिसाल है।

विप्र फाउंडेशन के भंवर पुरोहित ने कहा कि संस्था द्वारा पिछले बीस वर्षों से विभिन्न गतिविधियों का आयोजन किया जा रहा है। भाजपा आईटी सेल के प्रदेश संयोजक अविनाश जोशी ने कहा कि प्रिंट एवं टीवी मीडिया तथा सोशल मीडिया के माध्यम से भी समाज कि संस्कृति को जन जन तक पाहुचने मे अहम भूमिका रहती है।

वरिष्ठ साहित्यकार शिवराज छंगाणी ने कहा कि पुष्करणा ब्राह्मण सावे की प्रत्येक परम्पराएं मितव्ययता की सीख देती हैं। साथ ही इनमें वैज्ञानिक तर्क भी हैं। ओलम्पिक सावे जैसी गतिविधियों से यह प्रेम और अधिक प्रगाढ़ होता है।

इस अवसर पर सावा मे शंख ध्वनि से शुरुआत करने वाले राष्ट्रपति से समानित शंखवादक कन्हैयालाल सेवग ‘मामा’, रोबीले मुछ किंग गिरधर व्यास,  मिस्टर डेजर्ट श्याम कल्ला,  संतोष पुरोहित, भवानी शंकर छंगाणी, अनिल बोड़ा और हांडा महाराज को अभिनंदन पत्र,  माला और श्रीफल भेंट कर व रमक झमक ओपरना पहनाकर अतिथियों द्वारा समानित किया गया। रमक-झमक के अध्यक्ष प्रहलाद ओझा ‘भैंरू’ ने सम्मानित होने वालों का परिचय दिया ओझा ने कहा कि सावा से पूर्व ओलंपिक सावा का वातावरण बनाने मे रोबीलों व शंखनाद करने वालों कि अहम भूमिका होती है । इनका सम्मान करना संस्कृति का सम्मान करना है। लक्ष्मीनारायण ओझा ने रमक झमक की ओर से आभार व्यक्त किया। ‘सावा संस्कृति का सम्मान’ कार्यक्रम मे अश्विनी कल्ला, स्कूल शिक्षा के प्राचार्य सुनील बोड़ा, एडवोकेट गोपाल पुरोहित, मास्टर बच्ची क्लब के भँवर पुरोहित, देवकीनंदन ‘विशेष’, शिवदत ओझा, बी आर ओझा, सुशील छंगानी,  राधेश्याम ओझा, रोहित छंगाणी, भँवरलाल ओझा, धनराज रंगा, राकेश बिस्सा, मनीष देराश्री, राजेश के ओझा, भेरु छंगानी, महेंद्र सागर, ज्योतिषी सूर्यनारायण, बालकिशन व्यास, बद्रीनारायण, अभिषेक भादानी, राधे ओझा, रोबिन जोशी, किशन चौथानी सहित अनेक मौजूद थे।

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