पुष्करणा सावा 2019
पुष्करणा सावा झलकियाँ
पुष्करणा सावा 2017 सम्मान समारोह
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पुष्करणा ‘सावा’ ओलम्पिक परिचय
सादगी,सरलता,एकता व समरूपता के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध पुष्करणा समाज का सामुहिक शादियों का ओलम्पिक ‘सावा‘ एक परिचय - सावा का अर्थ सह़ विवाह, सामुहिक विवाह व सहयोग से है । बजुर्गो की माने तो सामुहिक विवाह परंपरा की शुरूआत जैसलमेर जिले से पुष्करणा समाज में 1300 वर्ष पहले हुई और बीकानेर में लगभग 150 वर्ष पहले शुरूआत हुई। एक ही दिन एक ही समय में, एक ही लगन में और एक ही गणवेष में शादी करने की इस ...
पुष्करणा नाम कैसे पड़ा
पुरात्व के आधार पुष्करणा समाज भारतवर्ष के अत्यंत प्राचीन समाजों में से एक है। एपीग्राकियां इंडिया और एक्सकवेसन पट राजघाट तथा विभिन्न शोध ग्रंथों के आधार पर इस समाज की प्राचीनता और मानव समाज को इसकी देन के प्रमाण उपलब्ध हैं पर कब से मंच गौड़ों की गुर्जर शाखा से अलग होकर देश देशान्तर में इन्होंने अपना अस्तित्व विस्तार किया यह अभी तक अनुसंन्धेय ही है। पौराणिक आख्यानों के आधार पर भृगु ऋषि के पुत्र गुर्जर के तृतीय पुत्र ऋचीक ...
पुष्करणा शादी ओलंपिक ‘सावा’
पुष्करणा समाज ने लगभग सैंकडां वर्ष पहले सामूहिक विवाह का प्रारम्भ एक राजनैतिक समझौते से उत्पन्न स्थिति के कारण किया। इस समझौते के पीछे छिपी सामाजिक बौद्धिक क्षमता जो सामूहिकता के अर्थ को व्यापक रुप से समझती थी इसे अंगीकार किया साथ ही भविष्य पर सही नजर रखने वाले पुष्करणा ब्राह्मण समाज ने आर्थिक विषमता से फैलने वाली बुराईयों पर अंकुश लगाने की सोच व अन्य समाजों को भी नई दिशा देने की पहल की। एक जानकारी के मुताबिक इस ...
शादी परम्परागत कार्यक्रम
सगाई, देवी देवताओं के मंगल गीत, मिलनी, मुंह रंगाई बड़ों का खोला, टीकी, लगन, गणेश स्थापना हाथधान, लड्डूडी चढ़ाना, दाल देना, माया बैठाना, छिंकी ( गणेश परिक्रमा), मायरा (भात), लड़की की और से खिरोड़ा, अंजलि पुजा, बारात ढुकाव, टीके की रस्म, जुआ टीका (हास्य), वर पक्ष की ओर से बरी, पागा पुजाई, गुडी जान, देवी देवताओं के जात फेरी ...
विवाह के परम्परागत गीत
विनायक :- 1. सूंड सूंडळो गणपत कोमण गारो। ओछी पींडी रो कोमणा गारो, ए म्हारे विरध विनायक। 2. चालो गणेश आपों जोशी जी रै चालो। गणेश परिक्रमा (छींकी): ॐ आशु शिशानो व्वृष भोनभीभां । बारात:- तू मत डर पे हो लाडला, केशरियो लाडो जीवंतो रे टालौटा (स्वागत गीत):- वर का स्वागत :- हर आयो हर आयो-काशी रो वासी आयो। वधु का स्वागत :- कमला आई- कमला केल करन्ती आई-रुकमण रंग समन्ती आई। सुहाग गीत- दौड़ी दौड़ी बाई आपरै नौने जी ...