सतयुग से शुरुआत होकर त्रेता, द्वापर में कई ऐसी बड़ी घटनाएं हुई है जिसे विशेष माना जाता है। एक ही विशेष दिन कई ऐसे पर्व, आयोजन, घटनाएं आदि हुई है। इसे इस तरह से समझा जा सकता है जैसे परिवार की अलग अलग पीढ़ियों के सदस्यों का जन्मदिन एक ही तिथि को पड़ता हो तो कई बार दादा और पोते के जन्मदिन को एक ही दिन मनाया जाता है। क्योकि वे अपने अपने समय मे उसी तिथि के दिन पैदा हुए है। इस तरह त्योहारों में कई बार देखा जाता है कि इसके पीछे एक से अधिक मान्यताएं परम्पराएं सामने आती है। भारत देश बहुत बड़ा है, यहां के त्योहार और उत्सवों में स्थानीय प्रभाव भी दिखता है। भारत के सबसे बड़े त्योहारों में से एक दीपावली को सिर्फ एक दिन नही बल्कि 5 दिनों के पर्व के तौर पर मनाया जाता है। हर दिन का एक विशेष महत्व होता है और कई जगह अलग अलग नामों से भी जाना जाता है।
दीपावली पांच दिवस के पर्व की शुरुआत धनतेरस से होती है। दूसरा दिन नरक चतुर्दशी/रूप चतुर्दशी का होता है और तीसरा दिन दीपावली का होता है। इसके अगले दिन गोवर्धन पूजा और पांचवा दिन भाई दूज का होता है। इस तरह दीवाली के हर दिन का विशेष महत्व होता है इसका दूसरा दिन नरक चतुर्दशी या रूप चतुर्दशी के रूप में जाना जाता है। इस संबंध में तीन कथाएं प्रचलित है और एक कथा हनुमान जी की भी है जिसकी जानकारी बहुत कम लोगो को है। हालांकि कई जगह इस दिन हनुमान जी के अलग अलग रूप की पूजा प्रचलित भी है। आईये जानते है नरक चतुर्दशी/छोटी दीवाली/रूप चतुर्दशी क्यों मनाई जाती है इसके मनाएं जाने के पीछे क्या कथाएं प्रचलित है।
पहली कथा
हनुमान जी का सूर्य को फल समझकर खा लेना
यह कथा अंजनी माता के लाल वीर बजरंग बली हनुमान जी के बचपन की है। जब हनुमान जी अपने बाल रूप में थे तो उन्होंने अपनी पेट की क्षुधा/भूख शांत करने को आतुर थे। माता द्वारा भोजन प्राप्त करने के बाद भी क्षुधा शांत नही हुई तो ऐसे में हनुमान जी ने सूर्य की और देखा । इसे किसी खाने की वस्तु समझ हनुमान जी ने इसे फल समझ निगल लिया था। बाल हनुमान की ये घटना देख सारे देव देवता चौंक गए और सूर्य देव की और से चिंतित होने लगे। हनुमान जी द्वारा सूर्य को निगल जाने के बाद पृथ्वी पर अंधेरा छा गया। ऐसे में सभी देवता इसका समाधान ढूंढने लगे। आखिर में फिर इंद्र देव ने जाकर हनुमान जी पर वज्र से प्रहार किया जिससे सूर्यदेव हनुमान जी के पेट से निकलकर मुख से बाहर आ गए। माना जाता है कि यह घटना रूप चतुर्दशी के दिन ही घटीत हुई थी। इस घटना के पश्चात बाल हनुमान को इंद्र देव तथा अन्य देवताओं ने हनुमान जी को आशीर्वाद व वरदान भी दिए। इसके पश्चात ही इस चतुर्दशी हनुमान जी की विशेष पूजा का विधान प्रारम्भ हुआ।
इस दिन कई जगह हनुमान जी का विशेष पूजन किया जाता है। माना जाता है कि इस दिन पूजा करने से रोग, कष्ट, संकट दूर होते है। हनुमान जी से काल यानी यम भी डरते है और अकाल मृत्यु के भय को दूर करते है। कई जगह नरक चतुर्दशी के दिन हनुमान जी को नाहरसिंह रूप में भी पूजा जाता है। नाहरसिंह भगवान की आकृति कुमकुम से घर की रसोई की दीवार पर बनाई जाती है। इस दिन चावल, दाल तथा मीठी लापसी बनाकर नाहर सिंह भगवान को भोग लगाया जाता है।
दूसरी कथा
भगवान विष्णु द्वारा वामन अवतार में पूरी पृथ्वी नाप लेना
एक समय ऐसा था जब दैत्यराज बालि ने देवताओं को भी संकट में डाल दिया था। दैत्यराज महादानी भी था इसी को देखते हुए और देवताओं को संकट से उबारने के लिए वामन अवतार लेकर जब बालि के पास गए तो तीन पग जमीन के वचन के रूप में 2 पग में ही पूरी पृथ्वी को नाप दिया। जब वामन भगवान ने पूछा कि अभी तक तुम्हारे दिए गए वचन अनुसार 1 पग और कहां रखूं तो बालि ने अपना सिर नीचे कर इसके ऊपर रखने को कहा। यह देख भगवान खुश हो गए और बालि से वरदान मांगने को कहा। बालि ने दान की हुई वस्तु के बदले वापस मांगने से इनकार कर दिया। इसके बाद कहा कि आप वर देना चाहते है तो मैं जन कल्याण के लिए एक वर चाहता हु।
आपने कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से लेकर अमावस्या की अवधि में मेरी संपूर्ण पृथ्वी नाप ली। इन तीन दिनों में प्रतिवर्ष मेरा राज्य रहना चाहिए और इन तीन दिन की अवधि में जो व्यक्ति मेरे राज्य में दीपावली मनाये उसके घर में लक्ष्मी का स्थायी निवास हो तथा जो व्यक्ति चतुर्दशी के दिन नरक के लिए दीपों का दान करेंगे, उनके सभी पितर कभी नरक में ना रहें, उसे यम यातना नहीं होनी चाहिए।” राजा बलि की प्रार्थना सुनकर भगवान वामन बोले- मेरा वरदान है की जो चतुर्दशी के दिन नरक के स्वामी यमराज को दीपदान करेंगे, उनके सभी पितृ लोग कभी भी नरक में नहीं रहेंगे और जो मनुष्य इन तीन दिनों में दीपावली का उत्सव मनाएंगे वहां लक्ष्मी का वास रहेगा। भगवान वामन द्वारा बलि को दिये इस वरदान के बाद से ही नरक चतुर्दशी के व्रत, पूजन और दीपदान का प्रचलन आरम्भ हुआ, जो आज तक चला आ रहा।
तीसरी कथा
भगवान कृष्ण द्वारा नरकासुर का वध और 16 हज़ार कन्याओं को सम्मान
एक पौराणिक कथा के अनुसार नरक चतुर्दशी के दिन भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर नाम के असुर का वध किया था। नरकासुर बहुत शक्तिशाली था स्वयं इंद्र ने श्री कृष्ण से इसका वध करने की प्रार्थना की थी। इस असुर ने 16 हजार कुंवारी कन्याओं को बंदी बना लिया था।नरकासुर का सेनापति भी बहुत शक्तिशाली माना जाता था जिसका नाम मुर था और इसका वध श्री कृष्ण द्वारा किये जाने की वजह से ही इनका नाम मुरारि पड़ा था। भगवान कृष्ण ने नरकासुर और मुर का वध करने के बाद 16000 कन्याओं को बंधन से मुक्ति दिलाई। परन्तु समाज द्वारा इन कन्याओं की अस्वीकार्यता के कारण श्री कृष्ण से प्रार्थना की अब हम समाज मे स्वीकार्य नही है अब हमारे सम्मान का क्या होगा हमसे कौन विवाह करेगा और कौन स्वीकार करेगा। तब भगवान श्री कृष्ण ने समाज में इन कन्याओं को सम्मान दिलाने के लिए अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ मिलकर इन सभी कन्याओं से विवाह कर लिया। 16 हजार कन्याओं को बंधन से मुक्त करवाने तथा नरकासुर व मुर के संकट से मुक्ति दिलाने के उपलक्ष्य में उत्सव के तौर पर दीप जलाए गए और उत्सव मनाया गया।
चौथी कथा
इस दिन पूजा से नरक लोक से विष्णु लोक की प्राप्ति
रंति देव नाम के एक राजा थे जो बहुत ही शांत स्वभाव और पुण्यात्मा थे। उन्होंने अनजाने में भी कोई पाप नहीं किया था। लेकिन जब मृत्यु का समय आया तो उनके समक्ष यमदूत आ खड़े हुए। तब उन्हें पता चला के उनको स्वर्ग लोक नही नरक लोक लेकर जा रहे है।
उन्होंने यमदूत को बोला मैंने तो कभी कोई पाप कर्म नहीं किया फिर आप लोग मुझे लेने क्यों आए हो अथवा मुझे नरक में क्यों लेजाने आये हो। आप मुझ पर कृपा करें और बताएं कि मेरे किस अपराध के कारण मुझे नरक लोक जाना पड़ रहा है।
यह सुनकर यमदूत ने कहा कि हे राजन् एक बार आपके द्वार से एक ब्राह्मण भूखा लौट गया था, यह उसी पाप का कर्मफल है। इसके बाद राजा ने यमदूत से एक वर्ष का समय मांगा। तब यमदूतों ने राजा को उनके स्वभाव के कारण एक वर्ष का समय दे दिया। राजा अपनी भूल सुधारने के लिए ऋषियों और मुनियों के पास पहुंचे और उन्हें अपनी सारी कहानी सुनाकर उनसे इस पाप से मुक्ति का उपाय पूछा।
तब ऋषियों ने उन्हें बताया कि कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन व्रत करें और ब्राह्मणों को भोजन करवा दे। इससे उनके प्रति हुए अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करें। राजा ने वैसा ही किया जैसा ऋषियों ने उन्हें बताया। इस व्रत के प्रभाव से राजा पाप मुक्त हो गये और एक वर्ष पश्चात् उन्हें विष्णु लोक में स्थान प्राप्त हुआ।
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