क्या होती है गोपाष्टमी:-
कार्तिक शुक्ल अष्टमी को ‘गोपाष्टमी’ कहते हैं | यह गौ-पूजन का विशेष पर्व हैं |इस दिन भगवान कृष्ण ने गौ को चराने का कार्य शुरू किया था।
क्या करना चाहिये:-
इस दिन प्रात:काल गायों को स्नान कराके गंध-पुष्पादि से उनका पूजन किया जाता है | इस दिन गायों को गोग्रास देकर उनकी परिक्रमा करें और थोड़ी दूर तक उनके साथ जायें तो सब प्रकार की अभीष्ट सिद्धि होती है | सायंकाल (गौधूलि वेला) में जब गायें चरकर वापस आयें, उस समय भी उनका आतिथ्य, अभिवादन और पूजन करके उन्हें हरी घास, भोजन आदि खिलाएं और उनकी चरणरज (खुर के नीचे की रज यानि धूल) ललाट पर लगायें उसका तिलक करें | इससे सौभाग्य की वृद्धी होती है |
(1) जहाँ समूह में गायें निर्भीक रूप से रह कर समूह में विचरण करें और बैठकर श्वास ले वो जगह बहुत पवित्र और आनन्द देने वाली हो जाती है । समर्थ व्यक्ति गायों के ऐसी व्यवस्था करें अथवा जहाँ ऐसा हो उनका सहयोग करे। उस जगह की चरण रज अपने घर के मुख्य द्वार पर लाल कपड़े में बांधकर लटकाए व गौ मूत्र घर में छिड़के तो घर का वास्तु दोष दूर हो जाता है व देव कृपा आने लगती है ।
(2) रोजाना खाशकर इधर उधर गली में बीमार, कमजोर या अपंग गाय व बछड़ों को गुड़ चारा देवे अत्यधिक सर्दी में गायों को रात में गुड़ अवश्य देवें।
(3)तुम्बड़ी वाले बाबा छोटुजी कहते थे कि गोपाष्टमी को गौधूलि वेलां में घर के बाहर सुरक्षित स्थान पर दीप जलाना चाहिये,भाव ये है कि संध्या के समय घर लौटती गायों को दूर से उजाला दिखाई दे और दूसरा अर्थ दीप से गाय की पूजा है तीसरा अर्थ सबको गाय का महत्व पता चले सब घरों के बाहर दीप जले। इसके पीछे भाव ये भी है कि गौ माता हमारे जीवन उजाला करें।