गोपाष्टमी पर्व गौ उत्सव के रूप में मनाया जाता है। भारतीय संस्कृति में गाय के लिए सर्वप्रथम रोटी निकालना, गुड़ देना व पूजा करना शामिल है। लेकिन किसी उत्सव के लिए एक विशेष दिन होता है और गायों के लिए विशेष दिन गोपाष्टमी माना जाता है। जिसे स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने पूजा हो वो मनुष्यों के लिए पूजनीय तो वैसे भी हो जाती है। जिसे हम ईश्वर मानते है वही ईश्वर अगर किसी को पूजे तो वो हमारे लिए और भी अधिक वंदनीय और पूजनीय हो जाता है।
गाय को माता क्यों कहा जाता है
सभी जानवर पशु कहलाते है लेकिन गाय ही है जिसे पशु नहीं बल्कि माता के रूप में पूजा जाता है। गाय में प्राकृतिक रूप से प्रेम और भावनाएं वैसे ही होती है जैसे मानवों में होती है। गाय में 33 कोटि देवी देवताओं का निवास माना जाता है। गाय के दूध से ही हज़ारों उत्पाद बनते है जो हमारे दैनिक जीवन मे जरूरी है। गाय के गोबर और गौमूत्र भी हमारे सनातन संस्कृति में पवित्र माना जाता है। गाय इस धरती पर प्रत्यक्ष रूप से मौजूद देवी हज जो मानवीय जीवन के लिए अमूल्य है। गाय माँ के प्रेम की तरह ही निश्छल भाव से परिपूर्ण होती है।
गोपाष्टमी पर्व कब शुरू हुआ
भगवान श्री कृष्ण को गौ पालने की वजह से गोपाल भी कहा जाता है। गोपाष्टमी पर्व मनाएं जाने के पीछे मान्यता है कि जब भगवान कृष्ण छोटे थे तो वे बछड़ो को चराने जाते थे। बाल रूप में कृष्ण को गायें चराने के लिए नही भेजा जाता था। कहा जाता है एक दिन कन्हैया ने गायों को चराने की जिद्द पकड़ ली तब माँ यशोदा और नंद बाबा ने हामी भरी। यह दिन कार्तिक शुक्ल अष्टमी का दिन था जिसे गोपाष्टमी के नाम से जाना जाता है। भगवान जिस दिन को चुन लें वो अपनेआप में मुहूर्त हो जाता है और इसी दिन से श्रीकृष्ण ने गायों को चराने की शुरुआत की थी।
गोपाष्टमी उत्सव मनाएं जाने के पीछे एक मान्यता गोवर्धन पर्वत उठाने से भी जुड़ी है। श्री कृष्ण ने इंद्र का घमंड तोड़ने के लिए गोवर्धन पर्वत को उठाया था। उसके बाद जब इंद्र ने भगवान कृष्ण से क्षमा याचना की और गोकुलवासी सही सलामत वापस अपने घर गए । इसके बाद श्री कृष्ण का कामधेनु गाय के दूध से अभिषेक किया गया और उत्सव मनाया गया जिसे गोपाष्टमी नाम से जाना जाता है। भगवान श्री कृष्ण ने गोकुलवासियों सहित सभी गायों व पशुओं की रक्षा की थी। माना जाता है कि गोवर्धन पूजा से लेकर गोपाष्टमी तक भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाएं रखा था।
कैसे मनाएं गोपाष्टमी
जिस तरह मां अपने बच्चो पर आए कष्ट संकट को दूर करती है वैसे ही गायों की सेवा करने से घर परिवार पर आए संकट और शारीरिक व्याधि दूर होती है। जहां गायों की पूजा और सेवा की जाती है वहां लक्ष्मी माता भी हमेशा प्रसन्न रहती है। गोपाष्टमी पर विशेष रूप से गौ माता के अंगों में मेहंदी, रोली हल्दी आदि लगाएं गायों को धोती ओढ़ाकर पूजा करें। गायों की धूप-दीप आदि से आरती करें और गायों को गुड़ व ग्रास खिलाएं। गौ पूजन के बाद गौ माता की परिक्रमा करें और पैरों के नीचे की धूल को अपने सर पर लगाएं। वर्तमान स्वरूप में गौशाला में तन मन और धन से योगदान देकर व किसी एक गाय का खर्चा वहन करने का संकल्प ले सकते है।
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गोपाष्टमी पर्व क्यों मनाया जाता है कैसे करे गौ पूजन – RamakJhamak
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