गणगौर राजस्थान के सबसे लोकप्रिय त्यौहारों मे से एक है । गणगौर का त्यौहार होली के अगले दिन ही यानि चैत्र की एकम से शुरू हो जाता हैं और अमावस्या के बाद की तीज तक मनाया जाता हैं । गणगौर मे गवर और इश्वर जी को पूजा जाता हैं । इस पूजा मे गवर यानि माता गौरी का रूप और इश्वर जी यानि भगवान शिव का रूप माना गया हैं । तीज तक चलने वाले इस त्यौहार मे यह माना जाता है कि हर वर्ष 16 दिन के लिए गवर (गौरी माता) अपने पीहर आती हैं और 7 दिन बाद इश्वर जी ( शिव) माता पार्वती को लेने आते हैं और इसी दिन से भी गवर माता के साथ इश्वर जी की पूजा भी की जाती हैं और तीज को माता गौरी अपने पति शिव के साथ ससुराल चली जाती हैं ।
धुमधाम से मनाये जाने वाले इस त्यौहार की खास विशेषता यह हैं कि इसमे कुवांरी कन्याओं द्वारा गवर और इश्वर जी की पूजा की जाती हैं । गवर यानि गौरी पार्वती जो सौभाग्य और वैवाहिक जीवन मे आंनद व सुख का प्रतीक हैं, अविवाहित कन्याऐं अच्छा पति मिलने और विवाहित जीवन के कल्याण, स्वास्थ्य और लंबे जीवन के लिए कामना करती हैं । कुंवारी कन्याओं द्वारा अपनी मनोकामना पूर्ण यानि विवाहित हो जाने के बाद एक बार फिर गवर व इश्वर जी की पूजा कर उन्हे धन्यावाद अर्पित किया जाता हैं ।
16 दिन तक चलने वाले इस त्यौहार मे कन्याऐं रोज सुबह जल्दी उठकर तैयार हो जाती हैं और गवर माता की पूजा मे लग जाती हैं । इस दौराने कन्याऐं रंगोली सजाती हैं और गवर माता को गुलाल से बनाकर आकृति देती हैं और सजाती हैं । बीकानेर मे यह माहौल हर गली मौहल्लौ के मंदिरो की छतो या चौकियों पर देखा जा सकता हैं । गीत गाती हुई कन्याऐं गवर को पूजती हैं और अच्छे पति प्रात्त करने व सुखी जीवन की कामना करती हैं । इस दौरान हाथ मे मेंहदी भी लगाई जाती हैं जो उमंग व ख़ुशी का प्रतीक होता हैं ।
त्यौहार के अंतिम दिन कन्याऐं और उनके साथ महिलाऐं गवर जी व इश्वर जी को सिर (माथे)पर रख कर और कुंए का पानी पिलाकर उन्हे अपने ससुराल (घर) तक पंहुचाने की परंपरा निभाते हैं और विदा कर अगले वर्ष वापस आने की प्रार्थना करते हैं ।
नोटः- अगर आपके पास भी हैं इस से संबधित खबर या फोटो तो हमें ramakjhamak@gmail.com पर मेल करें । धन्यवाद
Radhey Krishan Ojha (8003379670)