बिस्सो का चौक
बीकानेर शहर यात्रा(5)
संजय श्रीमाली, उस्ताबारी, बीकानेर।
बिस्सों के चौक में बिस्सा जाति के बाहुल्य के कारण इस चौक का नाम बिस्सों का चौक हुआ। बिस्सा जाति के लो बीकानेर की बसावट के समय से ही यहां आकर बसने प्रारम्भ हो गये। पोकरण के पास ‘बीला’ गांव से काम की तलाश में यहां आना प्रारम्भ हुए। बिस्सों के चौक में रहने वाले लोगों का मुख्य कार्य रसोई बनाना तथा खाता-बही का कार्य करना था।
बिस्सों के चौक का क्षेत्रफल बहुत कम है। बिस्सों के चौक के पूर्व में बिन्नाणी चौक, पश्चिम में व्यासो का चौक, दम्माणी चौक उतर में डागों का चौक तथा दक्षिण में व्यासों का चौक है। बिस्सों के चौक में काफी समय पूर्व से ही ख्याल बनाकर गाये जाते रहे है। यहां के लोग मौसम एवं राशन विषय पर ख्याल गाते बनाते थे। इस चौक में होली पर आयोजित रम्मत में बाहर से पार्टियों को बुलाया जाता था। भगत पूर्णमल तथा नौटंकी की रम्मत का वृहद आयोजन हुआ करता था। पिछले 50 वर्षों से ‘रमणसा बिस्सा’ के नाम से रम्मत हो रही है। रमणसा बिस्सा बजरंग व्यायाम शाला के उस्ताद थे। रमणलाल जी बिस्सा ‘रमणसा बिस्सा’ गंगासिंह के समय रायबहादुर (पदवी डागा परिवार) के घर पर खाता-बही का काम करते। जुबली गंगासिंह के समारोह के आयोजन में ‘रमणसा’ ने भी अहम भूमिका निभाई थी। वर्तमान में चौक में नौटंकी रम्मत विशेषकर होती है इसमें भुजाई (भाभी) के ताने देने पर देवर के संवादों का बहुत ही रोचक एवं व्यग्यात्म संवाद ख्याल के माध्यम से गाया जाता है।
एक समय सोनारों की गुवाड में नौटंकी रम्मत हो रही थी। उस समय नौटंकी बने मूलचंद दास स्वामी जो नौटंकी का पात्र निभा रहे थे उनकी सुन्दरता पर मोहित होकर एक स्त्री ऊपर से गिर गई और उसका देहान्त हो गया। इस घटना के बाद गंगासिंह ने नौटंकी रम्मत को बंद करवा दी। उसके बाद बीकानेर नगर में नौटंकी रम्मत का आयोजन नहीं होता था। श्री रमणसा बिस्सा ने ‘महाराजा गंगासिंह जी’ से मंजूरी लेकर बिस्सों के चौक में दुबारा आयोजन करवाया।
बिस्सों के चौक में मुख्य रूप से जागनाथ जी बिस्सा महापुरूष हुए जो कि पूजा-पाठ के साथ साथ बहीखाता का कार्य करते थे। इसी प्रकार रामसुखदास बिस्सा बहीखाते का काम करते थे। राजा सूरजसिंह के समय में श्री रामसुख दास बिस्सा ने तय किया कि वह पुष्करणा समाज के सभी लोगों को खाना खिलायेगे। कई लोगो ने खाने पर इतराज किया, लेकिन खाना हुआ। खाना बन रहा था किसी ने कह दिया कि इसमें लकड़ी दो और बीकानेर के दीवान ने उसमें लकड़ी दे दी अब सब जगह इस बात का प्रचार हो गया सभी ने कहा की वाह रे रामसुख दास तुम्हारे खाने में तो बीकानेर के दीवान ने लकड़ी दी, उस समय यह बहुत बड़ी बात थी।
बिस्सों के चौक के लोग घोड़े भी रखते थे। इसमें श्री चम्पालाल जी बिस्सा प्रमुख है। श्री नृसिंह दास बिस्सा (नृसिंह महाराज) जिनके पास पाकिस्तानी घोड़ा (पाकिस्तान लाया हुआ) था। यह घोड़ा 17 वर्ष तक घुड़ दौड़ में प्रथम रहा।
फोटो – श्री शिवकुमार रंगा