‘घी’ ढुळे तो कोई बात नीं, ‘पानी’ ढुळे तो म्होरो जी बळे”

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याद आने लगे बीकानेर के कुएं !

‘घी’ ढुळे तो कोई बात नीं,’पानी’ ढुळे तो म्होरो जी बळे”

बीकानेर शहर में इन्दिरा गांधी नहर (पूर्व में राजस्थान नहर/गंग नहर) से पहले पानी का स्रोत तालाब, कुण्ड, बावड़ी व कुएं ही थे। बीकानेर में लगभग 50 से अधिक कुए थे। कुछ रियासत ने और कुछ धनाढ्य लागों या समूह द्वारा बनाए गए थे। कुछ कुए पूर्ण बन्द हो गए, कुछ अभी भी सम्भवतः चालू है और कुछ को चालू किया जा सकता है ऐसी अवस्था मे भी है। कुछ अतिक्रमण से ग्रसित हो गए।

कुए में आमतौर से पाताल से पानी आता या जमीन के नीचे बहने वाली नदी से पानी आता। यह पानी मीठा व पाचक होता है, इसमें भरपूर खनिज होते है। कुएं से 4 8 16 ऊंठ या बैल एक साथ 2 4 8 की संख्या में ‘डोल’ या चड़स ( चमड़े से बने पात्र जिससे कुएं से पानी खिंचकर निकाला जाता) खींचते। कहीं कहीं 2 2 बेल की या ऊंठ की जोड़ी होती । एक बार मे 25 सेबी30 लीटर पानी निकलता।ज़िस कुए में मीठा पानी की बजाए खारा पानी निकलता उन्हें खारिया कुआं के नाम से जानते। वह पानी पशुओं को पिलाने व अन्य उपयोग में लिया जाता।

बीकानेर के स्थानीय मेले मगरिये पानी के इन स्रोतों के पास ही लगते रहे है। पानी यहां की जमीन में गहराई में निकलता रहा है इसलिए कहते है कि गहराई वाला पानी पीने वाले लोग गहरी सोच रखते है। ‘गहरा पानी गहरे लोग’

इस भयंकर गर्मी में शहर में पानी की किल्लत पर आज पानी के स्रोतों बावडियों, तालाबों और कुओं की याद आ गई और यहां की कहावत भी याद आ गई।

” ‘घी’ ढुळे तो कोई बात नीं,’पानी’ ढुळे तो म्होरो जी बळे”

लेखक – प्रहलाद ओझा ‘भैरु’

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