पहले साफी साफ कर पीछे रंग लगाय!
चला जाए कैलाश को शिव को शीश निवाय!!
दाऊ के दयाल बृज के राजा !
भांग पीवे तो भेरूकुटिया आजा!!
हरी में हर बसे भूरी(भांग) में भगवान
वैसे तो भांग जिन्हें भांग प्रेमी व शिव भक्त विजया कहते है,रोज 11:56 जो अभिजीत मुहूर्त होता है उस समय मन्त्रो भजनों के साथ बड़े जोश उल्लास और आध्यात्मिक माहौल बनाकर भांग घोटते व छानते है लेकिन होली में होलका के साथ हर रोज किसी न किसी मोहल्ले में लोग अपनी स्वेच्छा से भांग महोत्सव करवाते है जिसमें शहर के तमाम भांग प्रेमी पहुँचते है,कहते है,दारू गोलियां से ये नशा भिन्न है सिर्फ शुद्ध भांग पीने वालों पर रिसर्च की जाए तो वे बहुत शांत,अलमस्त अपनी मस्ती में आनन्द व भक्ति में रहते है,इनके विचार व्यवहार भी शुद्ध सातविक व व्यवहार में कुशल देखे गए है। इनकी दी हुई दुआ आशीष भी जबरदस्त होती है,यही कारण है नगर के बड़े बड़े सेठ साहूकार भी इनको बुलाते है। भांग पीने से पहले और घण्टो बाद तक ये नमःशिवाय या अन्य मंत्रो के माध्यम से शिव को प्रसन्न करते रहते है भक्ति में लीन रहते है। भेरूकुटिया मदन जैरी जैसे स्थान व व्यक्ति अभी इन महोत्सव के केंद्र बिंदु बने हुवे। मोहता चौक में बबला महाराज रोजाना आयोजन करवाते है, बारह गुवाड़ में बटाल महाराज होली को करवाते है इस प्रकार प्रतिदिन शिलशिला चालू हो गया है ।
रमक झमक
प्रहलाद ओझा ‘भैरु’
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