जानिये क्यों होती है गणेश परिक्रमा (छींकी)

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पुष्करणा ब्राह्मण समाज में विवाह से एक दिन पूर्व अथवा विवाह के ठीक पूर्व गणेश परिक्रमा जिसे स्थानीय भाषा में छींकी कहा जाता है की रस्म निभाई जाती है । छींकी में वर और वधु अपने अपने ससुराल किसी वाहन में बैठ कर जाते है, आगे आगे सर्वप्रथम पंडित कांसी की थाली में जिसमे भगवन गणपति विराजमान होते है और आटा व हल्दी से बना चहुमुखी दीपक गाय के घी से प्रज्वलित रहता है, को लेकर ॐ ना सु शि शा बोलते हुए आगे चलता है और उसके पीछे-पीछे वर अथवा वधु के परिवार के लोग होते है फिर वर अथवा वधु और उनके पीछे परिवार की औरतें केशरियो लाडो जीवतो रे रे … , अशोक लाडो आयो मलंगो.. आदि गीत गाकर उनको (वर या वधु) आशीर्वाद देती हुई चलती है और गणपति से निर्विघ्न विवाह संपन्न की शुभकामना करती है । इस छींकी का वास्तव में बहुत ही आध्यात्मिकता के साथ साथ तर्क संगत महत्व है ।  जब पंडित आगे थाली लेके चलता है तो उसमे वास्तव में वैदिक मंत्र जो रुद्री का है ॐ आ सु शि शा नो वृषभो ……. का उचारण उचे स्वर में में किया जाता है ।  इस वैदिक मंत्र के स्वर के गूंजने से तथा गाय के घी का चहुमुखी दीपक प्रज्वलित रहने से आस पास का वातावरण और वह मार्ग जिस से विवाह के दिन वर अथवा वधु को गुजरना है उस रास्ते की नकारात्मक शक्ति व ऊर्जा ख़त्म होकर सकारात्मक ऊर्जा पैदा हो जाती है ।

mahadev sang hemandri photo
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