बाली गवर को विदाई के साथ चैत्र सुदी 4 से पूजन शुरू किया जाता हैं । यह व्रत वैषाख बदी 3 तक चलता है तथा वैषाख बदी 4 को इसे विदाई दी जाती हैं । इसको स्त्रियां दीवार पर बनाकर पूजा करती हैं ।
यह धींगा गवर का वो पूजन है जिसे इस संसार में कोई भी सुख नहीं मिलता है उसे प्राप्त करने के लिए भक्त की इच्छा रहती हैं जो इस जन्म में (धींगाणे का काम) जो नसीब में नहीं हैं फिर भी मनोकामना पूर्ण करती हैं । इस पर्व का चित्र दीवार पर बनाकर चित्र की पूजा होती हैं । पूर्णाहुति के दिन चूरमा (रोटा) का भोग लगता है और प्रसाद ग्रहण किया जाता हैं । यह चित्र जहां बनता हैं उसी स्थान पर प्रसाद किया जाता हैं ।
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