पुष्करणा समाज में विवाह यानि पाणिग्रहण संस्कार से पहले कई रस्में नेकचार ऐसे है जिसके पीछे बुजुर्गो की उम्दा (गहरी) सोच रही है । उस समय यातायात के इतने साधन नहीं थे और एक शहर से दूसरे शहर मे रिश्ता होता तो लड़के को देखना, बात करना बार-बार कैसे संभव था तथा पूरी तरह से एक दूसरे को जान पाना या लड़के को जान पाना कैसे संभव था । उस समय घर के बड़े लोग चाहे लड़के-उड़की को मिलने देना उचित नहीं मानते लेकिन हर माता-पिता अपनी बेटी की उम्र, हाईट व स्वास्थ्य के अनुसार लड़का देखते और सगाई करते फिर भी कोई संदेह ना रहे और घर की औरते भी संतुष्ट हो जाये इसलिए अधिकांश रस्मे नेकचार औरतो को ही सौंप दिया गया और सगाई के बाद और पाणिग्रहण से पहले बींदणी के परिवार की औरते हर रस्म/नेकचार में लड़के यानि बींद की परीक्षा लेती है और परीक्षण करती है । इस तरह रस्म-रस्म और हास्य-विनोद मे पूरा स्वास्थ्य परीक्षण और बुद्धि-विवके का भी परीक्षण हो जाता हैं ।
होने वाला बींद कितना तेज है कितना चुस्त है, कितना भोला है, कितना विवेकी या बुद्धिमान है या फिर मंद बुद्धि है ये देखने के लिए विवाह की रश्मों मे ‘आटी‘ से मापना और पहनाने की रस्म बड़ी ही हास्य है । ‘सूत‘ के धागे से लड़के को पैर से सिर तक मापने और इस हास्य रस्म के साथ ही लड़की के परिवार की महिलाएं बींद को आटी के लहंगे पहनाने की कोशिश करती है और कई बार उसके साथ में छिपा होता है औरत का लंहगा (घाघर) वो तक पहनाने की कोशिश भी करती हैं । वर के दोस्त उसके साथ खड़े रहते हैं और वो भी चैंकना रहते हैं, आटी व लंहगा वर के पहना दिया जाये तो बड़ा हास्य-विनोद हाता है कि ये बींद तो बींदणी के कहने मे रहेगा यानि ये लड़का थोड़ा भोला है और गृहस्थ जीवन मे इतना तेज नहीं रहेगा । अगर औरत दो तीन-बार मे प्रयास के बाद पहनाने में सफल होती है तो समझो बींद होशियार है और बींद इतना तेज हो कि उसकी नजरें सब पर रहती है, जो ओगे पीछे बींद को घेरे रहती है और वो सब तरफ ध्यान रख के आटी/लहंगा पहनाते समय तुरन्त खड़ा हो जाता है, चोकी पर खड़ा हो जाता है या हाथ को उपर कर देता है, जिससे उसके गले मे वो नहीं पहना सके, ऐसी तीन कोशिश मे औरत सफल नहीं होती है तो यह समझा जाता है कि होने वाला बींद होशियार, चुस्त व बुद्धिमान हैं ।
प्रह्लाद ओझा ‘भैरू’
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