गणगौर के दिनों में शाम के वक्त गली मौहल्ले मे घुड़ला घुमाने की प्रथा चली आ रही हैं जिसे कुंवारी कन्याऐं जो गवर पूजती हैं वो शाम के वक्त एक मिट्टी के बर्तन मे दिपक जलाकर गीत गाती हुई चलती है । इसके बारे मे विस्तृत रूप मे पहले बताया जा चुका हैं । यह परम्परा क्यों चालू हुई इसके पीछे भी एक ऐतिहासिक घटना है जिसका उल्लेख कई किताबों कहानियों मे मिलता हैं ।
बात लगभग 500 वर्ष पूर्व अजमेर के सूबेदार के सैनिकों ने कोसाणा गांव (जोधपुर) की बस्ती से बाहर तालाब पर गणगौर पूजने वाली कुछ कन्याओं का अपहरण कर लिया था । तब जोधपुर के सेनापति सांरगजी खींची ने युद्व कर मुस्लिम सेनापति घुड़लेखां को तीरों से बींध कर मार डाला व उसकी रूपवती कन्या के साथ-साथ कोसाणा की अपहर्त कन्याओं को भी वापस ले आया, मृतक घुड़लेखां के कटे हुए सिर को थाली में रखकर तीजणियों ने घर-घर घुमाया । इस घटना की यादगार में यह घुड़ले का त्यौंहार मनाया जाता हैं । अनेक छेदों की मटकी घुड़लेखां के तीरों छिदे सिर की याद दिलाती हैं ।
Radhey Krishan Ojha (8003379670)