‘सावो टिपग्यो रे, किण नै ही म्हारे पर दया नीं आई रे’ पुष्करणा सावे के अवसर पर हुआ कवि सम्मलेन देखे वीडियो

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‘कल तक खेली कूदी झगड़ी, इस घर के आंगन में, तेरी किलकारी से आती खुशियां,इस जीवन में’ विदाई गीत की ये पंक्तिया शुक्रवार को रमक झमक संस्थान की ओर से पुष्करणा सावा ऑलम्पिक के उपलक्ष्य में आयोजित ‘सावा काव्य धारा’ कार्यक्रम में कवि संजय आचार्य वरुण ने प्रस्तुत की । कार्यक्रम में कवि कथाकार कमल रंगा नर ‘सावा है भाइपे री,सामूहिकता रौ भाव है’ प्रस्तुत की । हास्य व्यंग्य कवि बाबूलाल छंगाणी ने सावा धमाल ‘सावो टिपग्यो रे,किण नै ही म्हारे पर दया नीं आई रे’ प्रस्तुत कर उपस्थित लोगों…

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