शीतलाष्टमी का त्योहार होली के बाद मनाया जाता है। कई जगह इसे बासौड़ा भी कहते हैं। ये हमें ऋतु परिवर्तन का संकेत भी देते है। इस त्योहार में शीतला माता की पूजा की जाती है और माता को बासी खाने का भोग लगाया जाता है। इसके लिए एक दिन पहले है घरों में भोजन बना लिया जाता है और अष्टमी के दिन माता के भोग लगाया जाता है।
शीतला माता वाले दिन गर्म खाना पीना निषेध है। इस दिन माता के मटके में पानी भरा ठंडा जल चढ़ाने व ठंडा भोजन चढ़ाने की परम्परा है, राजस्थान में बाजरे,गेहूं की रोटी, घाट, मीठी राबड़ी, खट्टी राबड़ी, दही, सांगरी सब्जी, ठंडा हलवा व पूड़ी चढ़ाने का रिवाज है।
इसे ठंडा खाना, बास्योड़ा, शीतला माता आदि के नाम से जाना जाता है। कई लोग होली से पूर्व भी एक दिन ठंडा करते है किसी भी ठंडे वार यानि सोम या गुरु को भी पूजन कर ठंडा खा लेते है । मान्यता है कि माता के ठंडा भोग चढ़ाने व ठंडा भोजन प्रशाद लेने से उनकी कृपा बनी रहती है, उनको उनके बच्चों को चेचक, आंकड़ा काकड़ा, माता नामक बीमारी नही होती। इस दिन माता की सवारी गधे की भी पूजा की जाती है।
16 मार्च को है शीतलाष्टमी
इस बार शीतला सप्तमी 15 मार्च को शुरू होगी। वहीं शीतला अष्टमी 16 मार्च को है। शीतला अष्टमी पर पूजा का मुहूर्त -सुबह 6:46 बजे से शाम 06:48 बजे तक है।
शीतला अष्टमी 2020 सोमवार 16 मार्च 2020
शीतला अष्टमी पूजा मुहूर्त -सुबह 6:46 बजे से शाम 06:48 बजे तक
शीतला सप्तमी रविवार 15 मार्च 2020
शीतला सप्तमी/अष्टमी का महत्व
मां शीतला हाथों में कलश, सूप, मार्जन (झाडू) तथा नीम के पत्ते धारण किए होती हैं तथा गर्दभ की सवारी किए यह अभय मुद्रा में विराजमान हैं। शीतला माता के संग ज्वरासुर ज्वर का दैत्य, हैजे की देवी, चौंसठ रोग, घंटकर्ण, त्वचा रोग के देवता एवं रक्तवती देवी विराजमान होती हैं। इनके कलश में दाल के दानों के रूप में विषाणु नाशक, रोगाणु नाशक, शीतल स्वास्थ्यवर्धक जल होता है। स्कन्द पुराण में इनकी अर्चना स्तोत्र को शीतलाष्टक के नाम से व्यक्त किया गया है।
‘वन्देऽहंशीतलांदेवीं रासभस्थांदिगम्बराम्।
मार्जनीकलशोपेतां सूर्पालंकृतमस्तकाम्।।
अर्थात् मैं गर्दभ पर विराजमान, दिगम्बरा, हाथ में झाड़ू तथा कलश धारण करने वाली, सूप से अलंकृत मस्तक वाली भगवती शीतला की वंदना करता हूं। इस वंदना मंत्र से यह पूर्णत: स्पष्ट हो जाता है कि ये स्वच्छता की अधिष्ठात्री देवी हैं। हाथ में झाड़ू होने का अर्थ है कि हम लोगों को भी सफाई के प्रति जागरूक होना चाहिए। कलश में सभी तैतीस करोड़ देवी-देवताओं का वास रहता है, अत: इसके स्थापन-पूजन से घर परिवार में समृद्धि आती है। स्कन्द पुराण में इनकी अर्चना का स्तोत्र ‘शीतलाष्टक’ के रूप में प्राप्त होता है, इस स्तोत्र की रचना भगवान शंकर ने जनकल्याण के लिए की थी।
शीतला माता की पौराणिक कथा
एक गांव में ब्राह्मण दंपती रहते थे। दंपति के दो बेटे और दो बहुएं थीं। दोनों बहुओं को लंबे समय के बाद बेटे हुए थे। इतने में शीतला माता का पर्व आया। घर में पर्व के अनुसार ठंडा भोजन तैयार किया। दोनों बहुओं के मन में विचार आया कि यदि हम ठंडा भोजन लेंगी तो बीमार होंगी, बेटे भी अभी छोटे हैं। इस कुविचार के कारण दोनों बहुओं ने तो पशुओं के दाने तैयार करने के बर्तन में गुप-चुप दो बाटी तैयार कर ली।
सास-बहू शीतला की पूजा करके आई, शीतला माता की कथा सुनी। बाद में सास तो शीतला माता के भजन करने के लिए बैठ गई। दोनों बहुएं बच्चे रोने का बहाना बनाकर घर आई। दाने के बरतन से गरम-गरम रोटले निकाले, चूरमा किया और पेटभर कर खा लिया। सास ने घर आने पर बहुओं से भोजन करने के लिए कहा। बहुएं ठंडा भोजन करने का दिखावा करके घर काम में लग गई। सास ने कहा,”बच्चे कब के सोए हुए हैं, उन्हे जगाकर भोजन करा लो’..
बहुएं जैसे ही अपने-अपने बेटों को जगाने गई तो उन्होंने उन्हें मृत पाया। ऐसा बहुओं की करतूतों के फलस्वरुप शीतला माता के प्रकोप से हुआ था। बहुएं विवश हो गई। सास ने घटना जानी तो बहुओं से झगडने लगी। सास बोली कि तुम दोनों ने अपने बेटों की बदौलत शीतला माता की अवहेलना की है इसलिए अपने घर से निकल जाओ और बेटों को जिन्दा-स्वस्थ लेकर ही घर में पैर रखना।
अपने मृत बेटों को टोकरे में सुलाकर दोनों बहुएं घर से निकल पड़ी। जाते-जाते रास्ते में एक जीर्ण वृक्ष आया। यह खेजडी का वृक्ष था। इसके नीचे ओरी शीतला दोनों बहनें बैठी थीं। दोनों के बालों में विपुल प्रमाण में जूं थीं। बहुओं ने थकान का अनुभव भी किया था। दोनों बहुएं ओरी और शीतला के पास आकर बैठ गई। उन दोनों ने शीतला-ओरी के बालों से खूब सारी जूं निकाली। जूँओं का नाश होने से ओरी और शीतला ने अपने मस्तक में शीतलता का अनुभव किया। कहा, तुम दोनों ने हमारे मस्तक को शीतल ठंडा किया है,वैसे ही तुम्हें पेट की शांति मिले।
दोनों बहुएं एक साथ बोली कि पेट का दिया हुआ ही लेकर हम मारी-मारी भटकती हैं, परंतु शीतला माता के दर्शन हुए नहीं हैं। शीतला माता ने कहा कि तुम दोनों पापिनी हो, दुष्ट हो, दुराचारिणी हो, तुम्हारा तो मुंह देखने भी योग्य नहीं है। शीतला सप्तमी के दिन ठंडा भोजन करने के बदले तुम दोनों ने गरम भोजन कर लिया था।
यह सुनते ही बहुओं ने शीतला माताजी को पहचान लिया। देवरानी-जेठानी ने दोनों माताओं का वंदन किया। गिड़गिड़ाते हुए कहा कि हम तो भोली-भाली हैं। अनजाने में गरम खा लिया था। आपके प्रभाव को हम जानती नहीं थीं। आप हम दोनों को क्षमा करें। पुनः ऐसा दुष्कृत्य हम कभी नहीं करेंगी।
उनके पश्चाताप भरे वचनों को सुनकर दोनों माताएं प्रसन्न हुईं। शीतला माता ने मृत बालकों को जीवित कर दिया। बहुएं तब बच्चों के साथ लेकर आनंद से पुनः गांव लौट आई। गांव के लोगों ने जाना कि दोनों बहुओं को शीतला माता के साक्षात दर्शन हुए थे। दोनों का धूम-धाम से स्वागत करके गांव प्रवेश करवाया। बहुओं ने कहा,’हम गाँव में शीतला माता के मंदिर का निर्माण करवाएंगी।
चैत्र महीने में शीतला अष्टमी के दिन मात्र ठंडा खाना ही खाएंगी| शीतला माता ने बहुओं पर जैसी अपनी दृष्टि की वैसी कृपा सब पर करें। श्री शीतला मां सदा हमें शांति, शीतलता तथा आरोग्य दें।
शीतले त्वं जगन्माता
शीतले त्वं जगत् पिता।
शीतले त्वं जगद्धात्री
शीतलायै नमो नमः।।
|| बोलो श्री शीतला मात की जय ||
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One can easily judge the character of a person by the way they treat people who can do nothing for them.