मरुनायक चौक
बीकानेर शहर यात्रा(3)
-संजय श्रीमाली,
उस्ता बारी, बीकानेर।
नाटेश्वर महादेव जहाँ पार्वती
महादेव से आगे।
मरूनायक चौक को मंदिरों का चौक कहे तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी हर शिव मन्दिर में शिवलिंग के पीछे पार्वती की मूर्ति होती है या कई जगह शिव मूर्ति के साथ बराबर में पार्वती की मूर्ति होती है,लेकिन बीकानेर शहर के मरुनायक चौक में ऐसा शिव मंदिर है जहां मन्दिर में शिव लिंग से पहले मां पार्वती की मूर्ती है, यानि आगे है।
आज के युग में महिला सम्मान व समानता की बात करने वाले यहाँ आकर देखें तो पता चलता है कि इस शहर में महिलाओं को पुरुष से अधिक सम्मान दिया है और अपने आस्था में भी शिव से पहले पार्वती की पूजा की है।
मरुनायक चौक का नाटेश्वर महादेव मंदिर इसका उदाहरण है। सगे सम्बन्धी जब परम्परा या रिश्ते या रीत रिवाज की कोई भी बात करते है तो इस चौक के पुरुष सीधा जवाब देते है फाइनल बात या निर्णय पत्नी करेगी, जब कोई कहता है मुखिया तो आप हो,आदमी आप हो,तो उनका साफ साफ जवाब होता है वे नाटेश्वर महादेव के क्षेत्र में रहते है और हमारे नाटेश्वर ने महिला को आगे रखा है उनको सम्मान दिया उनकी पूजा से अपने से पहले यानि अपनी पार्वती को अपने से पहले पूजा का सम्मान दिया है और हम सब भी नाटेश्वर के भक्त है। हमारी पत्नियां ऐसे कामों में हम से अग्रणीय रहेगी व सम्मानीय रहेगी।
इस चौक में भव्य एवं कलात्मक मंदिर तथा समय-समय पर मेलो एवं उत्सवों के कारण वास्तव में आनन्द का माहौल रहता है। इस चौक में मरूनायक जी मंदिर, मदन मोहन जी का मंदिर, नाटेश्वर महादेव जी का मंदिर, जागनाथ शिव जी का मंदिर तथा चौक के छोर पर बने भगवान महावीर जी का जैन मंदिर श्रद्धालुओं के आस्था और विश्वास का केन्द्र है। प्राचीन काल से ही मरूनायक जी मंदिर व मदन मोहन जी के मंदिर में प्रति वर्ष जन्माष्टमी पर विशेष उत्सव मनाये जाते है। उत्सव के अवसर पर चौक में मेला लगता है। शीतलाष्टमी के दिन मरूनायक मंदिर के आगे छोटा मेला लगता हैं। इसी चौक का मदन मोहन भवन वैवाहिक व सामाजिक कार्यों के लिए सार्वजनिक भवन है।
मरूनायक चौक के पूर्व में मोहता चौक, उतर में मोहता चौक, पश्चिम में सेवगों का चौक तथा दक्षिण में बैदों का चौक व आचार्यों का चौक है। इस मोहल्ले में कई जातियों के घर है जिसमें माहेश्वरी समाज के मोहता, करनाणी, सादाणी, टेणाणी, द्वावरकाणी, बिहाणी व लखाणी, पुष्करणा ब्राह्मणों में जोशी, देराश्री, पुरोहित, व्यास, गज्जाणी तथा नाई आदि जाति के लोग आपसी सौहार्द के साथ रहते है।
इस मौहल्लें में बाजार आदि पहुंचने के लिए शॉर्टकट गलिया है जिसमें नाईयों की गली हैं इस गली में पत्थर की सड़क बनी हुई है। उसी प्रकार एकदम संकड़ी चौधरियों की गली है इसको चौधरियों की घाटी भी कहते है। चौधरियों की गली मंदिर के मुखिया के निवास स्थान के कारण प्रसिद्ध हुई। इन गलियों में कई मकान लाल पत्थर के बहुत ही कलात्मक बने हुए हैं। मरूनायक चौक में बनी लाल पत्थर हवेली बीकानेर में अपने आप अनूठी है। इस हवेली की बारियों में कलात्मक कारीगरी की गई है। चौक में निर्मित अधिकतर हवेलिया माहेश्वरी बनियों की है। चौक के चांडक हाऊस की बनावट भी बहुत प्रभावी है।
मरूनायक चौक में होली के अवसर पर सुप्रसिद्ध हेडाऊ मेरी की रम्मत का आयोजन होता है। यह रम्मत लगभग 200 वर्षों से भी ज्यादा समय से यहां हो रही है। कहा जाता है कि यह रम्मत देशनोक में चारण जाति के लोग करते थे। किसी बात पर चारण और माहेश्वरियों में विवाद हो गया और माहेश्वरियों ने इस रम्मत को बीकानेर में इस मोहल्ले में करने का फैसला किया तथा इसका जिम्मा सेवग जाति को दिया। सेवगों में किसी मतभेद के बाद स्व. मुरली मनोहर गज्जाणी पुरोहित ने इस रम्मत का आयोजन संभाला और निरन्तर चालू रखा। मरूनायक चौक में होने वाली रम्मत में गज्जाणी पुरोहित की अहम भूमिका रहती हैं। गज्जाणी पुरोहित यहां खारबारा से वर्षों पूर्व आकर बसे थे। चौक में गज्जाणी पुरोहितों का फलसा भी है। मदन मोहन भवन के पास की गली में स्थित फलसे अधिकतर गज्जाणी पुरोहितों के घर है। गज्जाणी पुरोहित भाटी राजपूतों के कुल गुरू कहे जाते हैं।
हेडाऊ मेरी की रम्मत श्रृंगार रस और वीर रस प्रधान है। अनेक वर्षो से स्व. मुरली मनोहर पुरोहित के वंशज ही रम्मत के मुख्य पात्र हेडाऊ की भूमिका निभा रहे है। रम्मत में विक्रम संवत 1883 तक भाईयोजी 1886 तक स्व. पदोजी पुरोहित विक्रम संवत 1902 में जगन्नाथन देराश्री हेडाऊ बने। रम्मत के कलाकारों की पोशाक, गीत व संवादों के बोल आकर्षक होते है। जिनका लोग रातभर जाग कर रसा स्वादन करते है। रम्मत में नूरसों का पात्र गज्जाणी पुरोहितों के सगा परसंगी तथा मैरी का पात्र मोहल्ले के किसी जाति के लोग निभा सकते हैं।
स्व. मुरली मनोहर पुरोहित के बारे में कहा जाता है कि वे कवि, ज्योतिषि, दुर्गा तथा भैरव के उपासक थे। उन्होंने चमत्कारी कार्य किए जो आज भी चर्चा में आते है। मरूनायक चौक की नाइयों की गली में रहने वाले नाई जाति के लोग राजा रायसिंह की महारानी गंगाजी के साथ सन् 1592 में जैसलमेर से आए थे। चौक के स्व. रामचंद्र जी हड्डी जोड़ व देशी इलाज के प्रसिद्ध चिकित्सक थे। नाईयों में स्व. रामनाथ, स्व. शिवप्रताप उर्फ भाईजी को चौधरी का सम्मान प्राप्त था। सामाजिक कार्यों में चौधरी परिवार की अहम भूमिका रहती है।
चौक में डांडिया नृत्य, मोरा, मीठा मोरा सहित ढोल की विभिन्न चालों के साथ नृत्य के दौर चलते हैं जिसमें चौक के सभी जाति समुदाय के लोग उत्साह से भाग लेते हैं। इस चौक के अनेक कलाकार बीकानेर से बाहर भी डांडियां नृत्य की प्रस्तुति दे चुके है। डांडिया नृत्य में नृतकों की विशेष पौशाक (बड़े बागे) दर्शकों को प्रभावित करते है। चौक में होने वाली रम्मत व डांडिया नृत्य में नगाड़ा स्व. शिवकिशन उर्फ गिन्डोजी सेवग, स्व. गंगादास सेवग, स्व. शिवदयाल बजाते तथा इनकी पीढी दर पीढी रम्मत में नगाड़ा बजाती रही है।
बीकानेर शहर की विशेष कहानी देखिये वीडियो में