ये भारतीय बुजुर्ग भी न ! हर बात पर-ऐसा करो वैसा करो और ऐसा मत करो ।
अरे, दुनियां कहां से कहां पहुँच गई और ये…
(दुनियां कही पहुंचे लेकिन अन्तोगत्वा हमारे भारतीय बुजुर्गो व संस्कृति को तो मानना ही पड़ता है हमें गर्व है और आज दुनियां भी मानने लगी है)
– घर में घुसते ही ड्योढी पर पहले हाथ- मुहं पैर धोवो ।
-अस्पताल जाकर आए हो तो पहले नहाओ -शवयात्रा में गए हो तो घर से बाहर नहाओ।
-जन्म और मरण हो तो सुआ और सूतक के निर्धारित दिनों की पालना करो । उस समय रसोई, पनीढा(पानी स्थान) व मन्दिर में हाथ मत लागाओ सूतक वाले अपने बर्तन अलग रखो, सबसे अलग बिस्तर लागाओ।
– मृतक कपड़े बिस्तर फ़ेकदो, बाद मे घर को धोओ और उस झाड़ू भी बाहर फेंक दो और दाह संस्कार क्रिया करने वाले के कपड़े बर्तन भी 10 दिन बाद फेक दो। मृतक की अर्थी को कंधा देने वाले सभी मुंडन करवाओ। क्रियाकर्म करने वाले व्यक्ति का लाल कपडे पहन कर अलग रहना बाहर निकलने कि मनाही क्वारांटिंन जैसे नियमों का पालन चलता आ रहा है।
– 10 दिन तक घर के निजी लोगों के अलावा अन्य पड़ोसी व मित्र उनके घर का सूतक समय का भोजन आदि न करो । 11 वें दिन पूरे घर की सफाई, मटकी बदलना, पानी की टँकी साफ करो, घर मे गौ मूत्र छिड़को, घर के लोग पंच गव्य लो ।

– नाक व मुख छू लिया तो हाथ जूठा हो जाएगा, मत छुओ। छू लिया तो जूठे हाथ भोजन मत परोसो न खुद जीमो। भोजन की थाली अपने से ऊपर चौकी (पाटा) पर रखो। भोजन सब साथ बैठकर लेकिन अलग अलग करो। बहुत सी ऐसी बाते है जो शायद लिखनी रह गई हो इतने नियम से सावधानी रखना चाहे बैक्टीरिया हो या जर्म्स या वायरस हर तरीके से पहले ही सावधानी। आज ये सब अपना रहे है ।
हमारे बुजुर्ग ये सब पालन करते थे और पालन करवाते भी थे। फिर पाश्चात्य प्रभाव शुरू हुआ, हम पर भी कुछ असर आया। आज के पढ़े लिखे लोगों ने उन्हें अनपढ़, गाँव वाले, रूढ़िवादी कहना शुरू किया। हमें भी विदेश की पाश्चात्य संस्कृति शौक़ लगा देखा देखी जूठी होड़ में हमने भी बुजुर्गो की बातों को तवज्जो कम देना शुरू कर दिया। हम भी इस तथाकथित आधुनिक प्रभाव में आने लगे थे ।
आज पूरी दुनियां नतमस्तक हो रही और मान रही है हमारे बुजुर्गो की बाते वो भी शत प्रतिशत। आज गर्व से सीना भर आता है कि वे बिना पढ़े लिखे इतने बड़े वैज्ञानिक थे? उन्होंने हमारे जीवन शैली में वो डाल दिया जो आज पूरी दुनियां नतमस्तक होकर सुरक्षा के लिये भारतीय सनातन संस्कृति की तरफ देख रही है।
कहते है ना कि मुसीबत में अपनी संस्कृति और अपनो की बाते याद आती है। आज पूरी दुनिया मुसीबत में है और आदतें अब हमारे बुजुर्गों की बताई हुई अपनाई जा रही है। बस भूलने की कगार पर थे ! आज हमारी सनातन संस्कृति ने फिर याद दिला दिया, हम भूलने वालों को भी और सम्पूर्ण विश्व को भी कि भारतीय सनातन संस्कति और संस्कृति को मानने वाले पहले भी महान थे, आज भी महान है और माँ भारती की कृपा से आगे भी रहेंगे।
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आर्टिकल – प्रहलाद ओझा ‘भैरु’, बीकानेर 9460502573
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