यहाँ होली पर नहीं पकता खाना और नहीं खेलते होली ।
“होली नहीं पूजते-चौवटिया जोशी”
घटना 1752 की है ! फाल्गुन पूर्णिमा की रात्रि माड़वा(पोकरण) गॉव में होलिका दहन का उत्सव था ! सैकड़ौ ग्रामीण की उपस्थिति में धधकती होली की परिक्रमा देते देते हुए जोशी हरखाजी की पत्नी लालाबाई की गोद में से उसका सबसे छोटा बेटा भागचन्द अचानक होली कुण्ड में जा गिरा माता उस वक़्त घर में सब्जी में छोंक लगा रही थी उन्हें जेसे ही पता चला की पुत्र होली की स्पेट में आगया माँ ने भी पुत्र वियोग में जीने की बजाय स्वंय के अग्निदाह को स्वीकार करते हुए कहा कि ” भविष्य में चौवटिया जोशियो की सन्तान और कुल वधुएं होली की पूजा न करें , होली की झाल ( लपटें) न देखें और ना ही होली में पकवान पकायें” इसिलिये पुरे विशव में चोवटिया जोशी होलका लगने से होलिका दहन तक पकवान नही बनाते न छोंक लगाते हैं. उनके सगे स्नम्बन्धी उनके खाने के पकवान बनाकर उनको देते हैं.
जोशोयों को जलती लकड़ी पानी से बुजाना मना हैं तेल और घी में पकवान पकाना बनाना मना हैं सब्जी में छोंक लगाना मना हैं.
इस प्रकार पुत्र के साथ सती होने कारण लालाबाई
” मॉ सती ” के नाम से विख्यात हुई जिनका मंदिर पोकरण के माड़वा गॉव में है।
– राजीव जोशी