राख भस्मी से भरे जाते हे गोदाम और करवाया जाता है भस्मी स्नान !
नगर के भीतरी इलाको मे होली मनाने के खेलने के अजीबो गरीब तरिके हे ,शहर के लोग हर चीज में आनंद व् मस्ती ढूढ ही लेते है । इसके पीछे कई मान्यताएं व् तर्क भी है । होली की रात को बहार बैठ कर सब लोग होली के अंगारों पर पापड़ सेकते हे और खाते है तथा सबको बाटते व् खिलाते है इसके लिये प्रहलाद ओझा ‘भैरु’कहते हे कि होलिका में अनेक शक्तियां थी और वो शक्तियां वो एनर्जी हमे मिले इसलिये होलिका के अंगारों पर सेके गये पापड़ खते हे वही एक तर्क ये भी हे की कोई बुराई की सोच लेकर बैठी होलिका जली तो लोग उसके अंगारों पर पापड़ सेक कर खाते है व् ख़ुशी मानते है ।। @@@ होळी की रात्रि और धुलण्डी की अल सुबह 4 से 5 बजे सबसे पहले घरो से बड़े बुजुर्ग घरो से निकल कर होलिका के पास पहुचते हे और ठंडी भस्मी को अपने पूरे शरीर पर डालते है मलते हे पास खड़े लोग हाथ पीपा या जो भी चीज चाहे वो बोरी हो या टिन भर भर कर उनपर डालते रहते है ,कई लोग उनकी जेब भर देते है तो कई पेंट अंडर वियर के अंदर तक ये राख डाल देते है ‘गोदाम भरो 2’, चलता रहता है ।आमतौर से कोई विरोध नही करता ।कहते है होलिका में अनेक शक्तियां थी इससे सकारात्मक ऊर्जा का शरीर में संचार होता है । कुछ जो भस्मी राख डलवाने का थोड़ा विरोध कार्ते हे उनके कपड़े फाड़ कर शरीर पर लगा दी जाती है ।ये भस्मी पुरूष घर ले जाकर अपने पार्टनर के शरीर पर भी लगाते है, प्रहलाद ओझा ‘भैरु’ कहते हे कि इससे एक दूसरे के प्रति आकर्षण व् प्रेम बढ़ता है ,शरीर स्वस्थ्य रहता है ।
राख भस्मी से भरे जाते हे गोदाम और करवाया जाता है भस्मी स्नान !
