बारहमास गणगौर व्रत व सम्पूर्ण विधि, क्या फल मिलता है इसको करने से जानिए
बारहमासी गणगौर के संबंध में :-
यह व्रत चैत्र सुदी रामनवमी के दिन शुरू होता है। यह सुहागन औरतें ही करती है। अखंड सुहाग,मंगल कामना,वंश वृद्धि, सद्बुद्धि व मोक्ष के लिए व्रत किया जाता है। एक कहानी के अनुसार इस व्रत को सर्वप्रथम राजा युधिष्ठिर व द्रोपदी ने भगवान कृष्ण से आज्ञा प्राप्त करके किया। जिससे मोक्ष प्राप्त हुआ। रामनवमी से एकादशी तक यह किया जाता है। बारहमासा गवर की पूजा विधवा स्त्री भी कर सकती है विधवाओं को भी इस व्रत उपवास के दिन दंत धावन स्नानादि करके शुद्ध वस्त्र पहन कर केवल केशर आदि की बिंदी लगाकर गौरी व्रत नियम पूर्वक करना चाहिए। संकल्प करना चाहिए। इसे करने से उन्हें आगे जन्म जन्मांतर तक वैधव्य नहीं होता।
व्रत का नियम,क्या खाएं,क्या चढ़ाए किसकी पूजा करें :-
चैत्र रामनवमीं से शुरू करें । चेत्र में पद देना चाहिये।
वैशाख में पीपल पूजन करना चाहिये व चप्पल दान देना चाहिये।
जेष्ठ माह में बड़ की पूजा करना व मांग कर पानी पीना,मटकी गिलास,लोटा गलना व टंकी भर पानी देना चाहिए।
आषाढ़ में जमीन पर सोना,सेज,चटाई, तकिया चद्दर पंखी, चप्पल,थाली व मिठाई देना चाहिए ।
श्रावण में हरी सब्जी ना खाना, हरी सब्जी दान देना ।भाद्रपद में दही न खाना, दही दान देना ।
अश्विन माह में खीर नहीं खाना बल्कि खीर दान करना चाहिए।
कार्तिक में तुलसी की पूजा करना, घी नहीं खाना । दीपक, रुई व माचिस दान देना चाहिए।
मार्गशीर्ष में मुंग नहीं खाना, मूंग दान देना ।
पोष माह में नमक नहीं खाना, नमक व खाण्ड दान देना । माघ माह में कोरे घड़े के पानी से स्नान करना, सूर्य दर्शन कर बाहर निकलना चाहिए तथा दो वस्त्र पहनना, वस्त्र दान करना, सीधा दान देना चाहिए।
फाल्गुन माह में ठाकुर जी को गुलाब खेलाना, मंदिर में गुलाब दान देने का महत्व है।
चैत्र महीने में गवर पूजना। अमावस्या के दिन दीवार पर गवर मांड कर पूजा करनी । चैत्र सुदी बारस के दिन वस्त्र आभूषण सहित गवर किसी को पूजाना । जयंती व्रत हमेशा निकोट या फलाहार से करना उचित । सुआ, सूतक,नखत, प्रतिष्ठा व तुलादान का भोजन नहीं खाना। चैत्र माह में 16 सुहागिनों को भोजन करवाकर वस्त्र भेट करना चाहिये ।
एकम से लगातार 16 तिथियों को क्रमशः निम्न चीजें व्रत के समय वर्जित बताई गई है:-कुम्डा,कटेरिका फल,लवण,तिल,खटाई,तेल,आंवला,नारीयल,काशीफल,परवल,निष्पाव,मसूर,बैंगन,शहद,जुआ व स्त्री प्रसंग ।
पद दान की वस्तु:- आसन,गौमुखी,रुद्राक्ष या तुलसी की माला,स्वर्ण की अंगूठी,कमंडल या लोटा,मिठाई,थाली,कटोरी,वस्त्र उपवस्त्र,यज्ञोपवीत,सुपारी दक्षिणा,छत्र/छाता व पगरखी
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