पाँच दिनों का महापर्व दीपावली अपने आप मे एक संपूर्ण त्योहार है। धनतेरस से शुरू होकर भाई दूज तक चलने वाले इस उत्सव के हर दिन की एक अलग विशेषता है। हमारी संस्कृति में हर उत्सव हर त्योहार का एक विशेष प्रयोजन होता है। पांच दिन के दीपावली पर्व को एकीकृत रूप में देखा जाता है इसके हर एक दिन की अलग और विशेष महत्ता है। इन पांच दिनों के पर्व की शुरुआत धनतेरस से होती है। धनतेरस का पर्व हर वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को मनाया जाता है और इसी दिन से दीवाली महापर्व की शुरुआत भी होती है।
आरोग्य प्रदान करने वाले भगवान धन्वंतरि को समर्पित है धनतेरस
कहा जाता है पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख धन और माया। सभी सुखों का भोग करने के लिए यहां तक कि ईश्वर का ध्यान करने के लिए भी स्वास्थ्य का अच्छा होना सबसे ज्यादा जरूरी होता है। दीपावली की शुरुआत भी सबसे पहले भगवान धन्वंतरि के दिन यानी आरोग्य प्रदान करने वाले देवता के दिन से होती है। भगवान धन्वंतरि ही आयुर्वेद के जनक है इन्हें स्वास्थ्य देवता तथा स्वयं भगवान विष्णु के अंश के रूप में जाना जाता है। अच्छा स्वास्थ्य प्रदान करने वाले भगवान धन्वंतरि को देवताओं का चिकित्सक यानि वैद्य के रूप में माना जाता है। इनके आशीर्वाद से ही औषधियों/दवाइयों में वो शक्ति उत्पन्न होती है जो शारीरिक कष्ट व पीड़ा को दूर करती है।
धन्वन्तरि द्वारा की गई जड़ी बूटियों आदि की खोज
हनुमान जी द्वारा लक्ष्मण जी के लिए लाई गई संजीवनी बूटी भी भगवान धन्वन्तरि को प्रार्थना कर ही लायी गयी थी। शारीरिक बीमारियों को दूर करने की औषधियां में शक्ति का प्रवाह धन्वन्तरि भगवान द्वारा ही किया जाता है। धन्वंतरि के अनुसार 100 प्रकार की मृत्यु संभव है परन्तु केवल 1 ही काल मृत्यु है। सभी अकाल मृत्यु का उपचार किया जा सकता है। धन्वन्तरि ने ही पृथ्वी पर पेड़, पौधों आदि के दोष व गुणों को प्रकट किया था। धन्वन्तरि केवल औषधि से ही नहीं, बल्कि इसके साथ साथ मंत्रों के उच्चारण से भी रोगियों का उपचार करते थे।
भगवान धन्वंतरि का आरोग्य प्रदान करने वाला मंत्र
ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतराये: ।
अमृतकलश हस्ताय सर्वभय विनाशाय सर्वरोगनिवारणाय ।।
त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूप ।
श्री धन्वंतरी स्वरूप श्री श्री श्री औषधचक्र नारायणाय नमः॥
मंत्र का अर्थ– परम भगवान को प्रणाम करते है जिन्हें सुदर्शन वासुदेव धन्वंतरी कहते हैं, जो अमृत कलश लिये हैं, सभी भय को दूर करने वाले हैं, सभी रोगों का नाश करने वाले हैं, तीनों लोकों के स्वामी और उनका निर्वाह करने वाले हैं उन विष्णु स्वरूप धन्वंतरी को नमन है। महाभारत, विष्णु पुराण, अग्नि पुराण, श्रीमद भागवत महापुराणादि तथा ग्रंथों सुश्रुत्र संहिता चरक संहिता, काश्यप संहिता तथा अष्टांग हृदय में भगवान धन्वंतरि का विभिन्न रूपों में उल्लेख मिलता है।
पुरादेवऽसुरायुद्धेहताश्चशतशोसुराः।
हेन्यामान्यास्ततो देवाः शतशोऽथसहस्त्रशः।
गरुड़ और मार्कंडेय पुराणों के अनुसार वेद मंत्रों से अभिमंत्रित होने के कारण वे वैद्य कहलाए
क्यों मनाई जाती है धनतेरस क्या धन के रूप में धनतेरस मनाना सही है
प्रायः धनतेरस को धन से जोड़कर देखा जाता है। हालांकि हमारी संस्कृति में स्वस्थ शरीर व आरोग्य को ही ‘आरोग्य धन’ की उपाधि दी गई है। पहले सुख के स्थान पर आरोग्य रहना ही सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। अच्छे स्वास्थ्य के बिना बाकी धन और सुख का भोग नही किया जा सकता है। हालांकि हम इस दिन को किस धन के परिपेक्ष्य में देख रहे है यह हम पर ही निर्भर करता है। धनतेरस के दिन धन्वन्तरि भगवान की महत्ता भी उतनी ही है जितनी कि दीपावली के दिन माता लक्ष्मी जी की पूजा महत्वपूर्ण है। धनतेरस के दिन को भगवान धन्वंतरि के प्राकट्य दिवस के रूप में मनाया जाता है। ये आरोग्य, सेहत, आयु और तेज के आराध्य देवता हैं। भगवान धन्वंतरि से आज के दिन प्रार्थना की जाती है कि वे समस्त विश्व को अच्छा स्वास्थ्य प्रदान कर मानव जाति को दीर्घायु प्रदान करें।
इस दिन खरीददारी करना क्यों माना जाता है शुभ
धनतेरस के दिन बाज़ारो में रौनक लगी रहती है। लोग इस दिन बाजार से सोना, चांदी, पीतल या बर्तन की खरीददारी करते है। खरीददारी के इस दिन को शुभ माना जाता है। इस संबंध में कहा जाता है कि धन्वन्तरि भगवान समुद्र मंथन के दौरान अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे और पीतल की धातु इनकी सबसे प्रिय मानी जाती है इसलिए पीतल की वस्तु के खरीद को शुभ माना जाता है।