मेले मगरिये, कौनसा मेला कब कहां और क्या खास, देखे कैलेंडर

शेयर करे

पूरे साल में जिस त्योहार और मेलो का सबसे ज्यादा इंतजार रहता है वो अब शुरू हो चुके है। इसके बारे में कहावत भी प्रचलित है – ‘तीज त्योहारा बावड़ी, ले डूबी गणगौर’ इसका अर्थ है तीज से त्योहारों की शुरुआत हो जाती है और गणगौर आते ही समापन हो जाता है। अब तीज से त्योहारों और पर्व की शुरुआत हो चुकी है और इसके लिए रमक झमक आपको ‘ मेला मगरिया व त्योहार ‘ का कैलेंडर तिथि उपलब्ध करवा रहा है। चौमासे में चार महीनें तक कोई भी पर्व…

शेयर करे
Read More

पशु पक्षियों की अठखेलियों से पता चल जाता है बारिश कब होगी

शेयर करे

सेटेलाइट से हमारे मौसम विभाग द्वारा वर्तमान समय में बारिश पर भविष्यवाणी की जाती है। लेकिन जब आज का आधुनिक सिस्टम नही था विज्ञान नही था तब भी हमारे बुजुर्ग भी अनूठे तरीकों से अनुमान लगा लेते थे और आज भी गांवों में बड़े बुजुर्ग कई तरीकों से बारिश का अनुमान बता देते है। पारंपरिक तरीके से बुजुर्ग कीट, पतंग, पशु व पक्षियों के व्यवहार से ही बरसात का अनुमान लगा लेते थे और आज भी बुजुर्गो से ये तरीके सुनने को मिल जाते है। प्रकृति को लगातार महसूस करने…

शेयर करे
Read More

‘ दाड़ी ऊपर टैक्स ‘

शेयर करे

जमानौ बदळग्यौ, रंग-ढंग बदळग्या , भेस बदळग्यौ भासा बदळगी, मन बदळग्या , मानतावां बदळगी, सैंसकार बदळग्या धरम रौ सरूप बदळग्यौ अर बदळग्या मोल तोल करण री निजर रा आधार । पण आ सगळी उथळ-पुथळ घणखरी सैरां मैं ई हुई । गांव इणां सूं घणी बातां मैं अछूता रैयग्या । म्हारां गांवां मैं हाल ई जूनी बातां अर इसा भोळाभाळा मिनख मिळे है जिकां नै बदळियोडै जमानै री हवा ई का छीपी नी। म्हांरौ लक्खू जाट इणी तरै रौ जीव हौ। किणी काम सूं माड़ाणी सैर रौ मूंडौ देखणौ पड़ियौ ।…

शेयर करे
Read More

कहीं घूमने जा रहे है तो इन चीजों को साथ ले जाना ना भूलें

शेयर करे

कहीं घूमने जा रहे है तो इन चीजों को साथ ले जाना ना भूलें गर्मी के दौरान अक्सर सभी ठंडे इलाको, पहाड़ी एरिया और धार्मिक यात्रा के लिए घूमने बाहर जाते है। ये घूमने के लिए सबसे सही समय होता है क्युकी बच्चो के वैकेशन का समय भी चल रहा होता है। तो अगर आप कहीं घूमने जा रहे है तो हम आपके सामान पैकिंग में मदद करने वाले है और ऐसी चीजों को बताने वाले है जो अक्सर हड़बड़ी में रह जाती है और फिर बाहर मुसीबत का सामना…

शेयर करे
Read More

एक ऊंठा ऊंठा बी ऊंठा साढ़े सात – मारजाओ के पहाड़े और पढ़ाने के तरीके

शेयर करे

एक ऊंठा ऊंठा बी ऊंठा साढ़े सात – मारजाओ के पहाड़े और पढ़ाने के तरीके आज की पीढ़ी को ये समझ ही नहीं आयेगा कि ये ऊंठा – ढूंचा क्या है ये कौनसा पहाड़ा होता है ? लेकिन हमारी पिछली पीढ़ियों ने पढ़ाई ही इन तरीकों से की है गणित के पहाड़ों को याद इसी तरीके से किया है। इसलिए पिताजी दादाजी को हिसाब के लिए कैलकुलेटर की जरूरत ही नहीं पड़ी। कोई भी हिसाब हो पॉइंट्स का हो या लाखों का आज भी मुखजुबानी कर देते है। हमें कोई…

शेयर करे
Read More

‘घी’ ढुळे तो कोई बात नीं, ‘पानी’ ढुळे तो म्होरो जी बळे”

शेयर करे

याद आने लगे बीकानेर के कुएं ! ‘घी’ ढुळे तो कोई बात नीं,’पानी’ ढुळे तो म्होरो जी बळे” बीकानेर शहर में इन्दिरा गांधी नहर (पूर्व में राजस्थान नहर/गंग नहर) से पहले पानी का स्रोत तालाब, कुण्ड, बावड़ी व कुएं ही थे। बीकानेर में लगभग 50 से अधिक कुए थे। कुछ रियासत ने और कुछ धनाढ्य लागों या समूह द्वारा बनाए गए थे। कुछ कुए पूर्ण बन्द हो गए, कुछ अभी भी सम्भवतः चालू है और कुछ को चालू किया जा सकता है ऐसी अवस्था मे भी है। कुछ अतिक्रमण से…

शेयर करे
Read More

जानिए स्थापना दिवस पर चंदा उड़ाने से लेकर खिचड़ा बनाने व मटकी पूजन की परंपरा के बारे में

शेयर करे

बीकानेर को राती घाटी, जांगल प्रदेश, उंटो का प्रदेश, धर्मनगरी का शहर कहा जाता है। इस वर्ष बीकानेर शहर अपना 535 वां स्थापना दिवस मना रहा है। इस शहर की स्थापना राव बीकाजी द्वारा 1488 ई में करणी माता के आशीर्वाद से हुई थी। बीकाजी ने अपने पिता के राज्य के राज पाठ को छोड़ ये नया शहर बीकानेर बसाया था। आखाबीज के दिन राव बीकाजी ने बीकानेर शहर की स्थापना की थी। उस समय से शहर में चंदा उड़ाने से लेकर हर घर में खिचड़ा, इमलानी, बड़ी की सब्जी,…

शेयर करे
Read More