जन्मदिन अक्षय तृतीया पर विशेष
बीकानेर शहर में लाल पत्थरों की हवेलियां और उनकी नक्काशी, ऊँठ की खाल पर उस्ता कला, काष्ठ पर मथेरण कला,शहर के दरवाजे,गेट,बारियां, गुवाड़, घाटी,चौक और चौक में रखे हुवे बड़े -बड़े पाटे इस शहर को खाश बनाते है। खाशकर शहर परकोटे की खाश जानकारी लगभग हर चौक की जो मौखिक सूत्रों से संजय श्रीमाली ने लिखी है। आप भी जानकर पढ़कर आनंदित होंगे। (रमक झमक)
इतिहास व सस्कृति से समृद्ध शहर
बीकानेर शहर ऐतिहासिक एवं सांस्कृति दृष्टि से बहुत समृद्ध रहा है। शहर की बनावट, हवेलिया, मोहल्ले, यहां के निवासी अपने आप में इतिहास को समेटे हुए है। यह शहर दो भागों में बंटा हुआ है। एक शहरपनाह (चारदीवारी या परकोटा के अन्दर) दूसरा शहर के बाहर की नवीन कॉलोनिया। पुरानी आबादी एक पत्थर की बनी चारदीवारी (भुर्ज) से घिरी हुई है। इस दीवार की ऊँचाई 30 फुट और चौड़ाई 6 फुट है। शहरपनाह की यह दीवार महाराजा गजसिंह ने (वि.सं. 1803-1844) बनवाई थी। वर्तमान में यह परकोट काफी स्थानों से टूट गया है तथा अपना अस्तित्व खो रहा है।
इस परकोट में 5 दरवाजे या गेट है। कोट दरवाजा, जस्सूसर दरवाजा, नत्थुसर दरवाजा, शीतला दरवाजा और गोगा दरवाजा है तथा 8 बारियाँ (छोटे दरवाजे) कस्साईयों की बारी, पाबूबारी, ईदगाह बारी, बेणीसर बारी, सोढ़ाबारी या उस्ताबारी मण्डलावतों की बारी या हमालों की बारी और बीदासर बारी है। इन दरवाजों और बारियों के नाम उस ओर के स्थानों, गांवों और उसके आस-पास बसने वाली जातियों के नामों पर रखे गए थे।
कोट दरवाजा नगर का मुख्य द्वार है। बीकानेर राज्य के समय गंगासिंह के शासनकाल तक ये सब दरवाजे एवं बारियां रात्रि को बन्द होती थी और इनकी चाबियाँ पुलिस कोतवाली में रहती थी। दरवाजे और बारियां पर सन्तरी रहते थे जो बरकन्दाज कहलाते थे।
बीकानेर बसने के साथ-साथ ओसवाल समाज की यहाँ अभिवृद्धि होने लगी। वच्छावतों की ख्यात के अनुसार पहले जहाँ जिसे अनुकूलता हुई, बस गये। मंत्रीश्वर कर्मचन्द्र के समय के पूर्व यहां की आबादी अच्छे परिमाण में हो गई थी। इससे उन्होने अपनी दूरदर्शिता से शहर को व्यवस्थित रूप से बसाने का विचार किया। फलतः मंत्रीश्वर ने नवीन विकास योजना के अनुसार प्रत्येक जाति और गोत्रों के घरों को एक जगह पर बसाकर उनका एक मोहल्ला या गुवाड़ प्रसिद्ध कर दी।
बीकानेर के मोहल्लों को जब हम मौखिक इतिहास उसी चौक के रहने वाले बाशिंदों से जानते है तो हमें कई ऐसी जानकारियां प्राप्त होती है जो बहुत ही रोचक एवं नवीन लगती है। कई ऐसी घटनाओं के बारे में पता चलता है जिसका शायद कहीं दस्तावेजीकरण न किया गया हो। लेकिन इन छोटी-छोटी घटनाओं ने बीकानेर के इतिहास और संस्कृति को बहुत समृद्ध किया है। इस शहर का प्रत्येक मोहल्ला का अपने आप अनूठा इतिहास संजोए अपने ऐतिहासिक परिदृश्य की गवाही दे रहा है।
चौक और गुवाड़
बीकानेर शहर की पश्चिम दिशा से पहला चौक आचार्य चौक है, जिसका पुराना नाम सोनावतों का चौक था। इस चौक में तीन महापुरूष हुए श्री महानंद जी, श्री धरनीधर जी तथा श्री मुरारदास जी । आचार्यों के चौक से सात सतियां हुई। इनमें से पांच के देवल तो उस्तों की बारी के बाहर आज भी सुरक्षित है। आचार्य जाति के अनेक सिद्ध पुरूषों में ब्रह्मादत्तजी (बह्मादादा) व वेणीदत जी का नाम श्रद्धाभाव से लिया जाता है। जब राजा मन्दिरों में जाते थे तो प्रसाद एवं चरणामृत के लिए आचार्य चौक से ही आचार्य जाति के पंडित मन्दिर में जाकर उनको प्रसाद एवं चरणामृत देते थे।
प्राचीन किला
बीकानेर का प्राचीन किला लक्ष्मीनाथजी मंदिर में स्थित गणेश मन्दिर था। उन किलों में कार्यरत ठाकरों के डेरे असानियों का चौक में थे। बम्बलू ठाकर का डेरा यहां प्रसिद्ध था। इनको राव महाराव की पदवी मिली। रियासत में सेनापति (हरिसिंह) छत्रिंसंह जी एवं हिन्दूमल बैद स्टेट के समय में सेनापति थे। तथा हिन्दूमल बैद के नाम से हिन्दूमल कोट गंगानगर 20-22 किमी. दूर पाकिस्तान बोर्डर पर गांव बसाया गया। यहां रहने वाली बैदो जाति के लोग विवाह में हाथी के औदे से जाते थे तथा सोने का कड़ा पुरूष पैर पहनते थे। इसी चौक के पास लखारा पट्टी थी जहां लाख की चुडि़या बनती थी। तथा चौक के पास लौहा पट्टी थी, फिर इसका नाम घी पट्टी हुआ तथा बाद में नगर की प्रसिद्ध चाय पट्टी बना।
बीकानेर शहर में त्यौहारों की धूम बारह गुवाड़ में अधिक रहती थी। इस मोहल्लें में बारह अलग-अलग जातियों निवास करती है। इस चौक में मुख्यतः बारह जातियों में छह पुष्करणा व छह माहेश्वरी जातियां है। बारह गुवाड़ चौक इस बात की मिशाल देता है कि अनेकता होते हुए भी सभी में आपसी एकता और सद्भाव है। इस चौक के लोग पूजा-पाठ, वेदपाठी तथा धार्मिक आयोजन करवाते थे। इसके साथ-साथ यहां के लोग योद्धा भी थे।
शिक्षा के लिए चौक में पहले मारजा की पोसवाले थी। चौक के कई मारजा अन्य मौहल्ले की पोसवालों में भी षिक्षा देते थे। लाल मारजा, मीन मारजा, जेठा मारजा, मूलिया मारजा, फागणिया मारजा, छगन मारजा, हीरालाल मारजा, बैजिया मारजा व गिरधर मारजा आदि ने अनेक लोगों को षिक्षित किया। विद्यार्थी सभा की ओर से कवि सम्मेलन मुषायरा, संगीत सम्मेलन, फैन्सी डेस, खेलकुद विद्यार्थी सभा की महिला उधोगषाला चांदरतन मूंधड़ा की कोटड़ी फरसोलाई पर चलती थी, में निर्मित सामग्री के लागत मूल्य पर किया। के लिए हर सप्ताह रविवार को प्रधान चौक में (रविवारीय हाट) लगाई जाती थी। स्वं द्वारका दत्त किराडू के नेतृत्वकाल में यह संस्था के कार्य कलापों की चरम सीमा पर रही। बारह गुवाड़ क्षेत्र में कुछ ऐसे विख्यात स्थान भी है जो अपनी विषेषता एवं विचित्रता प्रदर्षित करते है। यहां ‘आकाशनदी’ है जो बरसात के समय आकाश से आने वाले पानी से तीन-चार फीट पानी से भर जाती है। तत्पष्चात पूर्वत स्थिति में आ जाती है। ‘कोकड़ी बाग’ जहां कोई पेड़-पौधा व दूब आदि नहीं है लेकिन इस नाम से वर्षों से विख्यात है। ‘सदाफते’ के पीछे एक निश्चित गाथा है।
बारह गुवाड़ चौक में सभी तीज त्यौहार उत्साह से उल्लास वातावरण में मनाए जाते है। पुष्करणा सावा पर शहर का केंद्र बिंदु यही चौक रहता है, रमक झमक सस्था का कार्यक्रम इसी चौक में होता जिसे देखने देश भर से लोग आते है। चौक की होली व रम्मतें, होली पर बनने वाले स्वांग व मेरी होली के दिनों में चर्चा का विषय बनते है। यहां तणी तोड़ने की परम्परा रही है। इस बंधी हुई तणी को तोड़ने की रस्म को किराडू जाति के व्यक्ति के कंधे पर जोषी गंगदासाणी परिवार का नवयुवक चढ़ता और तलवार से गीली मूंज व पुराने जूते आदि से बनी तणी को तोड़ता। उस समय गुलाल उड़ती है और गुलाल की घटा छा जाती। अभी कुछ वर्षों से गेवर व तणी बंद हो गई। नत्थुसर गेट के बाहर कुछ वर्षों से नई तणी बांधकर परम्परा को शुरू किया गया है। घूलंडी के दिन निष्चित दीवार पर प्रति वर्ष आने वाने विक्रम सम्वत व सदाफतेह प्रति वर्ष लिखा जाता है।
बीकानेर की रम्मतों की शुरूआत बारह गुवाड़ से होती है। चौक में सर्वाधिक रम्मतें खेली जाती हैं। रम्मतों का स्वरूप पारंपरिक होता है। रम्मत की शरूआत मानेष्वर महादेव मंदिर के आगे ‘फक्कड़’ दाता’ रम्मत रंगा ठाकुरम के निर्देषन में वर्षों से खेली जा रही है।
भिश्तियों का चौक मदीना शरीफ की अनुकृति में बनी मदीना मस्जिद व हजरत हुसैन की शहादत पर मोहर्रम पर होने वाले मुथायरे के कारण विख्यात रहा है। भिश्तियों का मुख्य कार्य पेयजल सुलभ करवाना होने के कारण चौक के लोग ऊंटों, बेलों या अपनी कमर पर मशक भरकर पानी सुलभ करवाते थे। रियासती फौज में पेयजल आपूर्ति के लिए इन्हे रखा जाता था। बकरे व ऊंट के खाल की बनी पखाळ पर ये लोग पानी ढोने का कार्य करते थे।
चौक के वाशिन्दों ने बीकानेर रियासत की फौज में बहादुर सिपाही के रूप में कार्य किया। प्रथम व द्वितीय विश्वयुद्ध, गंगारिसाला, सार्दुल लाइट इन्फेट्री में भाग लिया। मरहूम हुसैन खां बीकानेर रियासत की ओर से मिश्र में बतौर जांबाज सिपाही के रूप में भेजे गए।
तुर्राकिलंगी के ख्याल लिखना व चंग के साथ गाने की कला में भिश्ती चौक के लोगों ने काफी प्रशंसा हासिल की। उस्ताद अकबर, हाजी अमीर खां, अजमद जी, इनायत जी, शालू जी, हाजी सुभान खां, बक्शू खां, कासिम खां, बनारसी खां, उस्ताद इनायत, हमीद खां, तथा उनके शागिर्द हमीद खटी, लिखमा भगत आदि तुर्राकिलंगी के मुख्य कलाकार रहे हैं। कभी तुर्राकिलंगी मनोरंजन का मुख्य साधन रहा हैं। चौक के शायर दीन मोहम्मद मस्तान उफ मस्तान बीकानेरी हर दिल अजीज शायर थे।
बिन्नानियों के चौक में प्रति वर्ष शरद पूर्णिमा पर रास होती है। रघुनाथ जी के मन्दिर के आगे करीब दो शताब्दी से होने वाली इस रास का बड़ी संख्या में लोग एकत्रित होते है। रात भर जागकर आनंद लेते हैं तथा भक्ति रस लूटते हैं।
चौक के बिन्नानी परिवारों ने अनेक सामाजिक सामाजिक, शैक्षिक व चिकित्सा सेवा के लिए अनेक भवनों का निर्माण करवाकर अनुकरणीय कार्य किया है। कोटगेट क्षैत्र में जेल मार्ग पर स्थित अणचाबाई बिन्नानी अस्पताल ( सिटी डिस्पेंसरी नं. एक ) मथुरा दास बिन्नानी धातव्य औषधालय 1962 में संचालित हो रहा है। बीकानेर के माहेश्वरी भवन का पुरा एक ब्लाक बिन्नानीयों ने बनवाया है। जस्सुसर गेट के अन्दर स्थापित बिन्नानी निवास 1962 से सामाजिक कार्यों का प्रमुख स्थल बना है। महिला शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए बिन्नानीयों ने नत्थुसर गेट के बाहर बिन्नानी कॉलेज का निर्माण करवाया। अलख सागर मार्ग की बिन्नानी बिल्डिंग, रानी बाजार का बिन्नानी भवन बिन्नानीयों की देन है।
सार्वजनिक महत्व के निर्माण कार्यों में प्रमुख व्यवसायी धनश्याम दास बिन्नानी व उनके पिता स्वर्गीय गोरधन राम बिन्नानी का नाम सम्मान से लिया जाता है। केरल में ‘‘बिन्नानी जिंक‘‘ कंपनी के मालिक धनश्याम बिन्नानी व बाल किशन बिन्नानी का बिन्नानी कॉलेज के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
बिन्नानी चौक की ‘फागणिया मारजा‘ की महाजनी विद्यालय शिक्षा का प्रमुख केन्द्र रहा है। इस पाठशाला में पढ़े लोगों को आज भी डेढ़ा ढूंचा आदि के पहाड़े याद है। चौक की दुजारियों की गली के पिछले 15 वर्षों में नृसिंह लीला का आयोजन हो रहा है।
बिन्नानीयों में बलदेव बिन्नानी किसी जमाने में जाने-माने रईस थे। वे नित कुर्ता व धोती बदलतें थे। एक बार उपयोग लिए वस्त्र को दुबारा नहीं पहनते थे। मोहल्ले के लोगों ने बताया कि बलदेव बिन्नानी जिस बग्गी में बैठते उस बग्गी में जुड़े घोड़े की पूंछ में इत्र लगाया हुआ होता था। इत्र की महक से लोग पहचान जाते थे कि बलदेव बिन्नानी मोहल्ले में आए है। वे इत्र के अव्वल दर्जे के पारखी थे। कन्नौज से उनके पास इत्र की परख करवाने के लिए लोग आते थे।
छबीली घाटी का क्षेत्र राति घाटी के नाम से प्रचलित था। राव जतसीसिंह ने हुमायू के छोटे भाई कांमरा को रातिघाटी के युद्ध में शिरक्त दी। यह युद्ध इतिहास में इस कारण प्रचलित है कि राजा जतसीसिंह ने गुरिला युद्ध करके कांमरा को हराया था।
इस मौहल्ले के शिक्षाविद्ों में श्री शिवचंद व्यास जिन्होने 1939-40 में एम. ए. अंग्रेजी साहित्य में आगरा विश्व विद्यालय से प्रथम श्रेणी तथा विश्व विद्यालय में प्रथम रहे। साथ ही साथ आगरा विश्व विद्यालय में विद्यार्थी युनियन के अध्यक्ष भी रहे। आगरा से यहां आकर बीकानेर रियासत के प्रधानमंत्री के. एम. पन्नीकर के निजी सहायक बने।
इसी मौहल्ले में भारत के प्रख्यात कवि श्री हरीश भादाणी के पिताजी श्री बेबा महाराज रहे। इनको योगीराज कहे तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।इनकी माहरियत ‘‘त्राटक उपासना’’ (निरन्तर सूर्य की तरफ देखना) में सिद्ध हस्त पुरूष थे।
बीकानेर शहर के परकोटे के अंत में बसा मोहल्ला दमामियान अपनी संगीत परम्परा के लिए विख्यात है। इस मोहल्ले के लोगो का मुख्य कार्य तब महाराजा की सवारी निकलती थी तब ‘‘नकारा’’ एवं ‘‘नगाड़ा’’ निशान लेकर चलना था। नकारे को फारसी में दमामा कहते है इसके बजाने वाले जाति को दमामी कहलाए।
मोहल्ला दमामियान ‘‘आलम खाना’’ के नाम से भी मशहूर था। क्योंकि ‘‘अलम’’ झंडा इनके हाथ में होता। यहां के निवासियों ने संगीत, वाद्ययंत्र तथा गायकी में हिन्दूस्तान का नाम किया। पाकीजा फिल्म संगीतकार गुलाम मौहम्द इसी मौहल्ले के थे।
धार्मिक ग्रंथ कुरान को कंठस्थ (हिफ्ज) कराने की मुहिम छेड़ी हाफिज गुलाम रसूल शाद 1944 से अब तक तकरीबन 300 से ज्यादा लोगों को कुरान कंठस्थ करवा दी है। इसी मौहल्ले के लोगों संगीत के साथ-साथ उर्दू-हिन्दी के कवि और शायर हुए जिन्होने पूरे हिन्दूस्तान में नाम किया। जिससे खास हुसैनुदिन साहब ‘फोक’ जामि साहब ने एक ऐसी पुस्तक लिखी जिसका नाम ‘‘मोसिने को नेन’’ मंजुम (पद्य) में मौ. साहब की पूरी जीवनी को लिखा।
शहर के सबसे चहल-पहल वाले चौक दम्माणी चौक छतरी के पाटे तथा घर की छत पर छतरी हेतु प्रसिद्ध है। इस चौक के निवासियों ने राष्ट्रीय ही नहीं अन्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी ख्याति अर्जित की है। केन्द्रीय कांग्रेस कमेटी के पूर्व कोषाध्यक्ष सोलापुर (महाराष्ट्र) के सांसद स्व. सूरज रतन दम्माणी अमरीका में ब्रोकर राधाकिशन दम्माणी, प्रमुख व्यवसाई भैरव रतन दम्माणी तथा प्रसिद्ध ख्याल लेखक बच्छराज व्यास इसी चौक के है।
दम्माणी चौक में प्रतिवर्ष सावन की तीज व चौथ में लगने वाले मेले को श्ुरू करवाने वाले तथा ऐतिहासिक छतरी का पाटा निर्माण करवाने वाले सेठ चम्पालाल व छगनलाल दम्माणी की तत्कालीन रियासत में भी अच्छी पैठ थी। कहा जाता है कि महाराजा गंगासिंह को राजगद्दी दिलाने में भी सेठ छगनलाल दम्माणी का बहुत बड़ा योगदान रहा है। पानी की झरी व एक छाता वाले नौकर को हर वक्त साथ रखते थे। सेठजी को पूछते थे कि हर वक्त झारी और छाता साथ क्यां रखते है तो वह कहते थे कि ‘मेह (वर्षा) व मोत रो क्या भरोसो कद आ जाए’।
नगर में सबसे बड़े चौकों में एक होने के कारण यहां आचार्य तुलसी, स्वतंत्रता सेनानी अरूणा आसिफ अली, डॉ. करणी सिंह, स्वामी रामसुख दास जी, राम राज्य परिषद के प्रबल ब्रहमचारी आदि अनेक प्रतिष्ठित लोगों की जनसभाएं बड़े पैमाने पर हो चुकी है। ब्रहमचारी की सभा में चारों पीठ के शंकराचार्य आए थे। इसके अलावा चौक में सत्यनारायण हरीओम तत्सत व कथा व रामलीलाएं भी वर्षों तक होती रही।
दम्माणी चौके में जन्मे स्व. रतन दम्माणी ने विक्रम संवत 1902 में प्रसूतिगृह, 1965 में फतेहचंद बालिका विद्यालय, सूरत दम्माणी के भाई व प्रमुख व्यवसायी भैरव दम्माणी ने यात्रीगृह व गोपीनाथ भवन परिसर में निःशुल्क होमियो चिकित्सालय का संचालन कर समाज सेवा में अनुकरणीय कार्य किया है।
नोट चिपकाकर उड़ाते और लगते सट्टे
दस्साणी चौक के श्री लूणकरण दस्साण को रियासत काल में हाकम का दर्जा मिला हुआ था। इसी चौक के श्री शक्तिदान दस्साणी पतंगबाजी के लिए प्रसिद्ध रहे हैं। वे पतंगों पर नोट चिपकाकर उड़ाते थे। कई बार उनकी पतंग के मुकाबले पर बीकानेर के सौदेबाज हजारों रूपये का सट्टा कर लेते थे। स्व. शक्तिदान दस्साणी के साथ वर्षों तक पतंगबाजी के दौरान दस्साणियों के चौक में प्रारम्भ से ही लोग पतंगों के शौकीन रहे है। स्व. नथमल दस्साणी के गोधे को आज भी चौक के लोग याद करते है। कहा जाता है कि दस्साणी के सांड की खासियत थी कि वह अनेक पेडि़यां पार कर घर में चढ जाता था।
डीडू सिपाहियों के इस चौक की विशेषता यह है कि इस मोहल्ले में मोहर्रम पर मिट्टी का ताजिया बनाया जाता है कि जो पूरे प्रान्त में केवल इसी मोहल्ले में बनता है तथा इसी ताजिये को यहीं पर ठंडा किया जाता है। मेहनत और मजदूरी के साथ-साथ अब मोहल्ले में शिक्षा के प्रति रूझान बढ रहा है।
गोस्वामी समाज कर्मकांड और मंत्र शास्त्र के कारण बीकानेर में प्रतिष्ठित रहा है। भूऋषिजी महाराज, नृसिंह लालजी व नंद कुमार जी (अलवांजी महाराज) के हजारों शिष्य इस विद्या के पारंगत हुए है। वर्तमान में पं. श्रीगोपाल गोस्वामी इस विद्या के ख्यात विद्धान है।
गोस्वामियों के चौक को मन मौजियों व कलाकारों का चौक कहे तो भी कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। बीकानेर में दाऊजी मंदिर के सामने स्थित गोस्वामी चौक आज भी अपने प्राचीन स्वरूप को बनाए हुए है।
सेठ राम गोपाल मोहता ने गुण प्रकाशक सज्जनालय बनवाया। पाठशाला-वाचनालय वाले सज्जनालय के चिरंजी लाल गोस्वामी प्रधानाचार्य रहे। जुबली नागरी भंडार के निर्माण में भी गोस्वामी चौक के निवासियों का योगदान रहा है। अंग्रेजी, हिन्दी व संस्कृत में एम. ए. करने वाले आशुकरण जी गोस्वामी कलक्टर के पद से सेवानिवृत हुए। ये ऑल इंडिया शतरंज ऐशोसिएशन के सचिव भी रहे।
जसकरण गोस्वामी जी के पुत्र अमित-असित जुड़वां भाई सरोद व सितार के जाने माने कलाकार है। संगीत के क्षेत्र में पंडित लाभू महाराज का नाम गौरव से लिया जाता है। इन से संगीत सीखने वालों की संख्या हजारों में थी। आज भी बीकानेर में लाभू महाराज के अनेक शिष्य है।
कहा जाता है कि महाराजा गंगासिंह जी के समय एक बार गजनेर झील में उनकी नांव फंस गई, कई जतन करने पर भी नांव नहीं निकल पा रही थी। उस समय इस मोहल्ले के श्री लफु हमाल ने अकेले ने ही उस नांव को निकाल दी। इस पर महाराजा खुश हुए और श्री लफु हमाल को पुरस्कार मांगने के लिए कहा। श्री लफु हमाल ने पुरस्कार में दो चीजो की मांग की एक हमालो के नाम पर कोई स्थान प्रसिद्ध हो तथा दूसरी की मेरे नाप की कोई चप्पल नहीं मिलती है तो राजाजी के आदेश पर उसके नाम की चप्पल बनवाई गई तथा यह बारी हमालो के नाम कर दी गई।
हर्षों के चौक में फाल्गुन शुक्ला द्वादशी के दिन हर्षों व व्यासों का पानी का खेल होता है जो एक विश्व प्रसिद्धी की ओर अग्रसर हो रहा है। यह पानी का खेल हर्ष एवं व्यास जाति के आपसी मतभेद की सुलह के कारण व्याप्त हुआ। उस घटना को चीरस्थाई रखने हेतु हर्ष व व्यास जाति ने आपसी सौहार्द के रूप में पानी के खेल का चलन किया जो आज भी अनवरत चल रहा है और यह पानी का खेल विश्व स्तर पर दूरदर्शन पर दिखाया जा रहा है। इस खेल को करीबन 150 वर्ष हो चुके है।
महाराजा गंगासिंह जी के समय राजघराने का हाथी कोचरों के चौक में आता था। हाथी पर राजा की पालकी रहती। हाथी को नारियल देने पर वह पैर से फोड़कर उसमें से गिरी खाता तथा सूंड से सलाम करता था। चौक के कई लोग शैक्षिक व सामाजिक कार्यों में अग्रणी रहे है। युवावर्ग, कर्मचारी, मजदूर एवं प्रौढ वर्ग को उच्च शिक्षा प्रदान करने के लिए 1965 में नेहरू शारदा पीठ महाविद्यालय की स्थापना की। कालेज स्थापना में भारत सेवा समाज के जिला अध्यक्ष रावतमल कोचर का उल्लेखनीय योगदान रहा।
कोचरो के चौक में कई विद्वान व्यक्ति हुए जिन्होंने प्रशासनिक सेवा, राजनीति, व्यापार, समाज सेवा, चिकित्सा आदि कई क्षेत्रों में अपने चौक तथा पूरे बीकानेर का नाम रोशन किया इसमें भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी मुख्यमंत्री के प्रेस सलाहकार स्व. के. एल कोचर(आई ए एस), पूर्व कलक्टर चम्पालाल कोचर न्यायाधीश श्रीमती पुष्पा कोचर, आदि विद्वान हुए है। इसी क्रम में स्व. शिवबक्श कोचर ने जैन कालेज की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाईं। उन्होने कालेज के भवन निर्माण नहीं होने तक जूते का त्याग कर दिया था। स्व. शिवबक्श कोचर की प्रतिमा पुरानी जैन कॉलेज वर्तमान जैन कॉलेज में स्थापित है।
इसी चौक के स्वर्गीय श्री रामरतन कोचर जिनका नाम बड़े ही आदर के साथ लिया जाता है इन्होंने नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा कलकता कांग्रेस अधिवेशन (1928) पर गठित कांग्रेस सेवादल में स्वयं सेवक के रूप में कार्य किया।
सन् 1947 में कोचरों के चौक में ‘‘अमन की बैठक ’’ एक वृहद आयोजन रखा गया। इस आयोजन में सभी समुदाय के लोगों ने भाग लिया। बीकानेर रियासत के अंतरिम सरकार के प्रधानमंत्री जसवंत सिंह, वितमंत्री खुशाल चंद डागा, कानून मंत्री सूर करण आचार्य व गृहमंत्री चौधरी हरदत सिहं, कुभाराम आर्य व रघुवर दयाल गोयल आदि बैठक में शामिल हुए।
लखौटियों के चौक में होने वाले नृसिंह उत्सव में पहले उत्सव का समस्त खर्चा लखोटियों के बीकानेर से बाहर रहने के कारण नृसिंह मंदिर ट्रस्ट जन सहयोग से उत्सव का खर्चा वहन करते थे। मंदिर में नृसिंहजी व हरिण्यकश्यप का चेहरा मुलतान पाकिस्तान से लखोटिया परिवार ही लाया था। तीन शताब्दी प्राचीन मिट्टी-कुट्टी से बने चेहरो की मरम्मत तक करने वाले लुप्त हो गए हैं। उत्सव के समय समूचा चौक दर्शनार्थियो से भरा रहता है।
लालाणी व्यास जूठोजी व्यास के वंशज है। व्यास जाति मे उत्पन्न हुए महापूरूष राजवेद जूठोजी व्यास मूलरूप से जैसलमेर की राजधानी लुद्रवा के थे। कहा जाता है कि बीकानेर नगर की स्थापना के दौरान बीकाजी का पड़ाव स्थानीय कोडमदेसर मे था। उसी समय बीकाजी के किसी परिजन को शारिरिक तकलीफ हो गई। उस दौरान उधर से गुजर रहे जुठोजी व्यास जो कि वेद थे उन्होंने उस परिजन का ईलाज किया तथा उसको स्वस्थ कर दिया। जुठोजी व्यास की चिकित्सा सेवा से प्रभावित होकर राव बिकाजी जूठोजी को ‘एक रोटी पांती’ तथा तमाम सुख सुविधाओं का वादा देकर बीकानेर ले आए।
इसी चौक के राजेन्द्र जी उर्फ रजिया बाबा का नाम आज भी सम्मान से लिया जाता है। रजिया बाबा ने दम्माणी चौक में रम्मत की शुरूआत की थी। यह अच्छे पहलवान थे। तथा ब्रहमसागर
मरूनायक चौक को मंदिरों का चौक कहे तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। इस चौक भव्य एवं कलात्मक मंदिर तथा समय-समय पर मेलो एवं उत्सवों का होना वास्तव में एकदम आनन्द का माहौल रहता है। इस चौक में मरूनायक जी मंदिर, मदन मोहन जी का मंदिर, नाटेश्वर महादेव जी का मंदिर, जागनाथ शिव जी का मंदिर तथा चौक के छोर पर बने भगवान महावीर जी का जैन मंदिर श्रद्धालुओं के आस्था और विश्वास का केन्द्र है।
मरूनायक चौक में होली के अवसर पर सुप्रसिद्ध हेडाऊ मेरी की रम्मत का आयोजन होता है। यह रम्मत लगभग 200 वर्षों से भी ज्यादा समय से यहां हो रही है। हेडाऊ मेरी की रम्मत श्रृंगार रस और वीर रस प्रधान है।
मथेरण चौक पूरे भारतवर्ष में प्रसिद्ध है। इसी चौक में गणगौर, ईश्र व भाया की प्रतिमा बनाई जाती है। मथेरण या महात्मा चौक कलाकारों का चौक है। इस चौक के पुरूष ही नहीं महिलाएं भी कलाकार हैं। फाल्गुन व चैत्र माह में यह चौक गणगौर बाजार के रूप में परिवर्तित हो जाता है। इस चौक से बनी गणगौरों की हिन्दुस्तान भर से अच्छी मांग रहती है।
रांगड़ी चौक का पुराना नाम माणक चौक था। इस चौक का बीकानेर के इतिहास में बहुत महत्व है। इसका मुख्य कारण यहां रहने वाले लोगों का रियासत से ज्यादा जुड़ाव था। बीकानेर की बसावट के साथ-साथ इस चौक का भी आधारभूत ढांचा तैयार होने लगा। रांगड़ी चौक नामकरण श्री कर्मचंद बच्छावत तथा पूरे बच्छावत परिवार के साथ होने वाले घटनाक्रम के कारण हुआ। ऐतिहासिकता से देखे जावे तो यहां ‘‘बड़ा उपासरा’’ है जिसमें श्रीपूज्य महाराज की गद्दी है। बीकानेर के इतिहास में इसका बहुत महत्व है। हिन्दूस्तान में खतरगच्छ जैन की सबसे बड़ी पीठ हैं वह यही पर है।
यहां एक गोदे की चौकी हुआ करती थी। गोदा ऐतिहासिक जैन भाण्डाशाह मन्दिर का चलवा (मुख्य कारीगर) था। यह बात भांडाशाह मन्दिर में स्थित शिलालेख पर अंकित है। इसकी याद में यहां होली की रात एक पाटे पर दूसरा पाटा रख कर सात पाटे रखे जाते थे। यहां स्थित सिटी डिस्पेसेंरी पहले सिटी कोतवाली थी तो कोतवाली के एरिया मजिस्ट्रेट भी रह चुके है। प्रसिद्ध संगीतकार के. एल. सहगल भी इसी मौहल्ले में कुछ समय रह चुके है। वह अपने दोस्त के यहां आए हुए थे। प्राचीन काल में यहां राममण्डली बनाई हुई थी तो उनके भजन बहुत प्रचलित थे तथा रामधून के समान उनकी भी अलग धून थी।
संस्कृत ग्रंथ ‘रत विलास’ व डॉ. राजेन्द्र प्रसाद व्यास ‘चूरूवाला की कृति ‘रताणी व्यासों के इतिहास व वंशावली’ के अनुसार रताणी व्यास लगभग पांच शताब्दी से बीकानेर में रह रहे है।
सोनियों-सिंगियों का चौक माहेश्वरी समाज की जातियों के निवास के कारण प्रसिद्ध हुआ। यह चौक तीन दरवाजों के मंदिर नाम से भी प्रसिद्ध है। चौक के सामने की सींगियों की गली के जी.डी कोठरी जाने माने उद्योगपति है। कोठरी ने 30 वर्ष पूर्व जन कल्याण संस्थान की स्थापना की। भारत वर्ष में अनेक स्थानों पर कार्य शुरू किए। बीकानेर में यह संस्था विकास कार्यों में लगा है। कोठारी ने रेल्वे स्अेशन के सामने घण्टाघर करवाया। उत्तर रेल्वे को घण्टाघर की जिम्मेदारी सौपने के बाद रेल्वे द्वारा देख रेख नहीं करने पर पुनः घण्टाघर को अधिन लेकर कल्याण स्थान उसका कर रहा है। कोठारी कल्याण संस्थान ने रोड़ पर कोठारी मेडिकल एण्ड रिसर्च स्थापना की। जिसमें शल्य क्रिया एवं चेस्ट विशेषज्ञ, शिशुरोग आदि की निःशुल्क सेवाएं शुरू करवा रही है। कोठारी कल्याण संसथान की ओर से ग्रामीण इलाको के लिए चल चिकित्सा व्यवस्था की गई।
तेलीवाड़ा चौक के पास नाचणियों का चौक भी रहा। जोगणिया जाति की औरते राजाओं की अम्बाड़ी (हाथी पर राजा बैठते थे उसके सामने का स्थान) पर नाचती थी। इससे राजा खुश होकर इनको एक अलग स्थान में बसाया। यह स्थान नाचणियों के चौक के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यहां भगत (स्वामी) गाने-बजाने का कार्य करते थे। राजा महाराजाओं के आगे गाना-बजाना करते थे। इस कारण यहां भगतियों की गली भी है।
तेलीवाड़ा चौक में जब बीकानेर रियासत राजस्थान मे विलिन हुई उस समय ततकालीन राजस्थान के मुख्यमंत्री श्री हीरालाल शास्त्री यहां पधारे। उनकी सभा इसी चौक में आयोजित हुई। उस मिटिंग के दौरान डॉ. छगन मोहता एवं श्री दाऊलाल व्यास ने उनको ‘‘आजाद इलाका तेलीवाड़ा’’ के नाम से स्मृति चिन्ह भेंट किया।
तेलीवाड़ा घाटी के हाजी मुहम्मद अब्दुला सन् 1924-24 में डिस्ट्रिक जज रहे। इसी प्रकार हाजी मुहम्मद अब्दुला के पुत्र मुहम्मद उस्मान आरीफ उत्तर प्रदेश के राज्यपाल रहे। सन् 1942 में श्री रावतमल पारीक, श्री दाऊलाल व्यास, श्री रघुवर दयाल गोयल आदि ने बीकानेर राज्य परिषद की स्थापना की।
वर्तमान में उस्ता कला का परचम सभी जगह फैल रहा है। बीकानेर रियासत में उस्ता महाराजा रायसिंह के समय में मुगल दरबार, दिल्ली से यहां आए। उस काल में उस्ताद की उपाधि दी जाती थी, उसी उपाधि का अपभ्रंश होकर उस्ताद से उस्ता हो गया। यह लोग हस्तकला के कारीगर थे। उस्ता कलाकार मिनिचर आर्ट- पत्थर पर (कोरनी), लकड़ी पर नक्काशी, पेन्टिग, चमड़े ऊंट की खाल पर सोने की नक्काशी का कार्य करते थे। उस्ता जाति के बाहुल्य के कारण ही इसी मोहल्ले का नाम उस्ता मोहल्ला रखा गया।
इसी मोहल्ले के गुलाम मौहम्द ललाणी रावण की तस्वीर बनाते थे उस पर महाराजा (गंगासिंह) दशहरे के दिन तीर चलाते थे। उस्ताद रूकनुदिन, उस्ताद हामिद रजा राजघराने के कारीगर थे। महाराजा डूंगरसिंह जी स्वयं राज द्वारा दिया गया कार्य दैखने उस्तों के मौहल्ले में आते थे। जूनागढ किले के निर्माण में उस्तों द्वारा काफी कार्य किया गया है। गंगासिंह जी के समय अहमद बक्श जी, फराशखाना (महकमें) के मिस्त्री थे। उनकी देख-रेख किले तथा रियासत के मुख्य महकमों में रंग पेंट का कार्य होता था। उस्ता ईलाईबक्श जी गंगासिंह के समय राज पोरट्रेट कलाकार थे। उन्होंने गंगासिंह जी की जो तस्वीर बनाई वह वर्तमान में यू एन ओ में स्थापित है।
इसी चौक के उस्ता हिसामूदिन के द्वारा पी बी एम अस्पताल में बच्चा वार्ड में (गंगासिंह जी के समय) बनाए गए चित्र मिनिएचर आर्ट के आज भी साक्षी है। इनको राष्ट्रपति से पदमश्री पुरस्कार भी मिला हुआ है। मुरादबक्श जी जैन मन्दिरों में नक्काशी का काम किया हुआ है। गुलाम मौहम्द उमराणी जी गजधर थे उनको राजघराने की तरफ से सोने का गज मिला हुआ था। मौ. असगर उस्ता को राज्य स्तरीय पुरस्कार ऊंट की खाल पर कलाकारी के लिए, मौ. हनीफ उस्ता को राष्ट्रपति से पुरस्कार प्राप्त है, इसी प्रकार श्री अजमल उस्ता को राष्ट्रपति अवार्ड पुरस्कार प्राप्त है। स्थानीय गजनेर में लगने वाला ‘जेठा भुट्टा पीर’ मेला यह उस्ता जाति के शुरू करवाया हुआ है।
भट्ठड़ों के चौक का पूराना नाम पिपलियों का चौक था। लगभग 100 वर्ष पहले चौक के बीचो-बीच बहुत बड़ा पीपल का पेड़ था। जिसके कारण यह पीपलियों के चौक के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस चौक में भट्ड जाति के लोगों के घर अधिक थे तथा इसके अलावा सेवग, नाई, पुष्करणा ब्राह्मण एवं श्रीमाली जाति के भी कुछ घर रहे। उस समय भट्ठ परिवार आर्थिक रूप से समृद्ध थे। भट्ठ जाति के लोगों का बीकानेर रियासत में महाराजाओं के आना-जाना था।एक समय भट्ठ परिवार में लड़के की शादि थी उस दौरान उस शादि का भव्य झलसा किया गया। इस झलसे की चर्चा पूरे बीकानेर रियासत में हुई तथा उसी दिन से इस चौक को भटठड़ों के चौक से जाना जाने लगा।
भटठड़ों के चौक में आरम्भ से ही शिक्षा के प्रति लोगों का रूझान रहा है। भारत आजाद होने के उपरान्त जब ‘फिकी’(फेडरेशन चेम्बर कॉमर्स और इण्डिस्ट्रीज) का गठन किया तक इस चौक के श्री भतमाल भटठ को चेयरमेन नियुक्त किया गया। श्री सूरज करण आचार्य ‘ज्योतिषाचार्य’ लगभग 90 वर्ष पहले अपने पैसो से पांवर हाऊस से भट्ठों के चौक तक बिजली के खम्बें लगवाकर बिजली का प्रबन्ध किया।
इसी चौक के श्री गणेश दास भटठ पुत्र श्री केवल दास भटठ बांगड़ ग्रुप के आर्थिक सलाहकार थे। उस समय में श्री सुन्दरलाल भट्ठ हिन्दूस्तान मोटरर्स के चेयरमेन थे तथा इनके भाई मोहनलाल भटठ ओरिएन्टल कम्पनी में एम.डी. के पद पर आसीन थे।मोहल्ले के पोला महाराज बड़े तपस्वी थे।
श्री सीनजी पुरोहित मुम्बई में तेजी-मंदी एवं चांदी के बड़े व्यापारी हुए। इनके पुत्र श्री हरिगोपाल जी पुरोहित ‘फनको जी’ ने इनके व्यापार को संभाला। इनके द्वारा निर्मित ‘गोल कटला’ स्टेशन रोड़, ‘बीकानेर भुजिया भण्डार’ के ऊपर बना पूरे बीकानेर में मशहूर है।
चौक में राजनीति क्षेत्र में भी अग्रणी रहा है सन् 1967 में श्री मक्खन लाल शास्त्री चुनाव प्रचार हेतु यहां आए तब रात को इसी चौक में विश्राम किया। श्री रिखबदास बोड़ा को 1975 के आपतकाल में जिंदा या मुर्दा पकड़ने का वांरट निकला लेकिन अपनी चतुराई के कारण श्री बोड़ा पकड़ में नहीं आ पाए।
मोहता चौक शहर के मध्य भाग में स्थित है। यहां देर रात तक चहल-पहल रहा करती है। चौक के चारो और रास्ते मिलते है जो कि किसी अन्य मोहल्ले से जुड़ते है। मोहता चौक में राज दिवानों का रहवास है। इस चौक में मोहता जाति के लोग ज्यादा रहने से चौक का नाम मोहता चौक रखा गया। मोहता दीवान बीकानेर रियासत में आर्थिक लेन-देन का कार्य करते थे। इस कारण यह आर्थिक रूप से भी समृद्ध थे। मोहतो की पिरोल पर बनी ‘‘रोंस’’(पिरोल के ऊपर बने भाग) पूरे बीकानेर रियासत में प्रसिद्ध है। मोहता चौक में बनी उद्धोदास जी कि पिरोल अपने आप में अद्वितीय हैं। यह पिरोल उद्धोदास जी ने बनवाई। कहा जाता है कि मोहता चौक में बनी मकराने की पिरोल में से जूनागढ़ किले तक जाने की सुरंग बनी हुई है।
मोहता चौक रबड़ी हेतु पूरे प्रांत में प्रसिद्ध है। यहां लगभग 100 वर्षों से रबड़ी बनाई जाती है तथा बेची जाती है। पहले रबड़ी को मिट्टी के सकोरे में दिया जाता था। तथा दूर-दूर से लागे रबड़ी हेतु यहां आते थे। चौक के श्री किशन गोपाल ओझा तथा उनके वंशज परिवार आज भी यही कार्य कर रहे है। मोहता चौक के श्री शंकरलाल हर्ष 1982 में एशियाड खेलों में टेबल टेनिस की टीम के तकनीकि ऑफिसर के लिए नियुक्त किए गए। मोहता चौक राजनीति में अग्रणी रहा है। सन् 1950 में हुए गेहूँ आन्दोलन के दौरान इस चौक में कई मुख्य बैठके आयोजित की गई।
सुथारों की बड़ी गुवाड़ का प्राचीन नाम लाखो की गुवाड़ था। लाखा सुथारों की ही उपजाति में से है। सुथारों की बड़ी गुवाड़ में वास्तु एवं शिल्पकला के अच्छे जानकर श्री बालुजी एवं लूणाराम जी कुलरिया हुए जिन्होंने बीकानेर रियासत में काफी कार्य किया। बीकानेर के सुप्रसिद्ध राजनेता श्री मुरलीधर जी व्यास का ससुराल गुवाड़ के श्री आशकरण जी बिस्सा के घर था। स्व. श्री मुरलीधर व्यास बीकानेर में दो बार एम.एल.ए. पद (1957 से 1967 तक) पर आसीन रहे। राजनीतिक गतिविधियों के सिलसिले में इस मोहल्ले में राष्ट्रीय स्तर के समाजवादी नेता, प्रो. जॉर्ज फनाडिश, श्री सुरेन्द्र मोहन, यमुना प्रसाद शास्त्री आदि नेता यहां पधार चुके है। गेहूँ आंदोलन, दूध निकासी आंदोलन तथा इस तरह के कई आंदोलनों की बैठके इस मोहल्ले में आयोजित हो चुकी है।
सुथारों की बड़ी गुवाड़ में स्थित नाईयों की गली में श्री सांगीदासजी व्यास के पुत्र श्री विजयशंकर जी व्यास आज पद्मभूषण अंलकृत है तथा विश्व प्रसिद्ध अर्थशास्त्री है। इसी प्रकार गुवाड़ के डॉ. नंदकिशोर जी आचार्य देश के सुप्रसिद्ध साहित्यकार है। श्री सागरदत्त आचार्य राजस्थान सरकार में स्टेट फोटो ऑफिसर रहे है।
बीकानेर में डागा परिवार जैसलमेर से यहां आकर बसे। तथा कुछ परिवार सिंध प्रांत से भी यहां आए। डागा परिवार ने बीकानेर रियासत में बहुत मात्रा में नजराने प्रस्तुत किए जिससे इनको रियासत में बड़े पदों पर आसीन किया गया।
बीकानेर के माहेश्वरी समाज में डागा वंश व्यापारी वर्ग में बहुत प्रतिष्ठित है और व्यवसाय के द्वारा डागाओं ने असाधारण ख्याति तथा संपत्ति प्राप्त की है। कम्पनी वाले डागे विभिन्न देशी रियासतों के नरेशों को समय-समय पर रूपये उधार देते थे। इस चौक में रहने वाले राय बहादुर श्री बंसीलाल जी की फर्म ‘राय बहादुर बंसीलाल अबीरचंद’ है। जो कि पूरे भारत वर्ष में प्रसिद्ध रही।
डागा चौक काफी विस्तार में फैला हुआ है। चौक में भव्य लाल पत्थर की बहुमंजिला पत्थर की हवेलिया बनी हुई है। इन हवेलियों को देखकर पता लगाया जा सकता है कि डागा परिवार आर्थिक रूप से बहुत ज्यादा सुदृढ़ थे। इनके व्यापार बीकानेर रियासत ही नहीं पूरे हिन्दूस्तान तथा रंगून, बर्मा, श्रीलंका, पाकिस्तान आदि देशों में भी रहे।
ढढ्ढों के चौक का पुराना नाम पारखों का चौक था कालान्तर में इस चौक का नाम सांडसूखा चौक पड़ा तथा वर्तमान में इस चौक को ढढ्ढों के चौक से जाना जाता है। इस चौक में विश्वविख्यात श्री चांदमल ढढ्ढा की गंवर का मेला लगता था इस कारण इस चौक का नाम ढढ्ढों का चौक पड़ा। सैंसकरण को बीकानेर रियासत से आठ घोड़ों की बग्गी तथा 16 घुड़सवार रखने का हक दिया हुआ था। महाराजा गंगासिंह जी इनका बहुत सम्मान करते थे।
पब्लिक पार्क के गेट सैंसकरण ने बनवाए तथा कोटगेट श्री पूनम चंद सांणसूखा के बनावाए हुए है। इस चौक का रसाला गंगासिंह जी के रसाले के जैसा था। चांदमलजी ढढ्ढा की बेटी के विवाह पर गंगासिंह जी स्वयं मौजूद रहे। तथा गंगासिंह जी की बेटी का विवाह उदयपुर हुआ तब इस मोहल्ले के श्री चांदमल ढढ्ढा, श्री पूनमचंद एवं सैंसकरणजी साथ गये। तथा उपहार स्वरूप श्री चांदमल जी ने पन्ने का कण्ठा तथा सैंसकरण जी ने चांदी की बग्गी दी। यह बग्गी बहुत ही सुन्दर है तथा उसी दौरान यहां से रेल डिब्बों में घोड़ों को भी उदयपुर ले जाया गया।
लगभग सौ वर्ष से प्रतिवर्ष गणगौर के दिन यहाँ गणगौर का मेला भरता आ रहा है। पहले गणगौर की प्रतिमा नख से शिख तक बहुमूल्य हीरे-जवाहरातों से सजाई जाती है। ये जेवर इतने कीमती हैं कि आज इनका मूल्य बीस-तीस करोड़ रूपयों से अधिक का आँका जाता है।
इन गहनों में सिर का सोने में जडाऊ हीरे का बोर, मोती लगा टीका, बोर के नीचे खाँचा जोड़ी। नाक में हीरे की मोती-जड़ाऊ नथ। गले में मोती, माणक, हीरा, पन्ना वाला कट्सरी गलपतिया, टेवटा तिमणिया। टेवटे के नीचे चन्दनहार। हाथ में मोथियों की बंगड़ी। गजरे, चूडि़याँ और मटरिया। उँगलियां में छल्ला, बींटी। कमर में हीरे, मोती सोने के कन्दोरे। पाँवों में नेवली, कड़ा, चूडियाँ जैसा पूरा बारह गहनों का सेट।
इस गणगौर के साथ भाइ्या भी पूजा जाता है। इसे नानिया, बबुआ, लड्डू गोपाल आदि नामों से भी पुकारा जाता है। इसके भी हीरे-जवाहरात के आभूषण हैं। सिर पर मोतियों की टोपी। कानों में ऊपर भँवरिये व नीचे लोंग, मोती लगे। गले में पन्ना का कण्ठा, मोती-पन्ना-माणक की पोतरी। हाथों में पाँवों जैसे कड़े तथा बाजूबंद पहना होता है। पुलिस के पहरे में गणगौर का दो दिन का यह मेला देखते ही बनता है।
ठंठेरा मोहल्ला सादुलसिंह जी स्टेच्यू का उद्घाटन तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद के कर कमलो से किया गया उस समय इस मोहल्ले में उनके स्वागत हेतु पीतल का गेट बनाया गया, इस गेट को देखने पूरा शहर उमड़ पड़ा तथा सभी ने इसकी सराहना की।
संजय श्रीमाली
उस्तों की बारी, बीकानेर।