बारहमासा गणगौर चमत्कारिक
शादी व सन्तान के लिये करें दर्शन
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गणगौर अनेक रूपों मे प्राचीन काल से ही पुजन की जाती रही है कुआँरी गणगौर,धींगा गणगौर, बारहमासा गणगौर । बारह मासा गणगौर चैत्र शुक्ल एकादशी व द्वादशी को दोपहर निकलती है और गढ़ पहुँचती है जहाँ भव्य मेला भरता है और सभी गणगौर इकत्रित होती है खोल भरी जाती है और महिलाए अपने साड़ी या ओढ़ना के पल्लू को गीला कर गवरजा को पानी पिलाती है। बारहमासा गणगौर का व्रत करने का विधान है, कहते है उसे नियमपूर्वक करने न केवल भौतिक सुख मिलता है बल्कि उसे दैहिक सुख पश्चात मोक्ष सुलभ होता है। शाम को पूरे शहर में जिन जिन के पास गवर प्रतिमा है वो अपने घर के बाहर पाटा या चौकी पर विराजित करते है। उत्सव में हर क्षेत्र की कुछ स्थानीय विशेषता उसको खाश बनाती है। बीकानेर शहर परकोटे में आलु जी छंगाणी की बारहमासा गणगौर बिल्कुल अनुठी है। सामान्यतः सम्पूर्ण गवर काठ की बनी होती है लेकिन ये गवर मिट्टी कुट्टी यानि अखबार, रद्दी कागज, दाना मेथी के संयोग से बनी लुगदी मिश्रण से बनाई गई है।
आलु जी छंगाणी की बारहमासी गवर के बारे में कहा जाता है कि इस गवर के आगे जो मन्नत माँगी जाती है वो बारह मास में पूर्ण हो जाती है, गवरजा के साथ ईशर, गणेश, कृष्ण व गुजरी की प्रतिमा भी खुले चौक में पाटे पर विराजित होती है।
ईश्वर महाराज के अनुसार आलु जी छंगाणी को किसी संत द्वारा वंश वृद्धि के लिये हाथ से गणगौर बनाकर पूजने का हुक्म के बाद और उन्होंने ये सब अपने हाथ से किया। वंश वृद्धि निरन्तर बढ़ी,ये चमत्कार जानकर शहर के लोग पहुँचने लगे। वंश वृद्धि की कामना करने वाले लोग गणगौर का प्रशाद लेते है व रक्षा सूत्र बंधवाते है। अच्छी शादी के लिये लड़कियां गवरजा के दर्शन करने पहुँचती है। कहते है विवाह योग्य बालिकाए अगर माता के सामने नृत्य करें तो उसे मनोकूल अच्छा जीवन साथ जल्दी मिलता है। बालिकाए व महिलाओ के अलावा पुरुष मण्डलियां भी बहुत शानदार गीतों की प्रतुतिया देते है। यहाँ उल्लेख करना ये भी जरूरी है कि पति पत्नी में अनबन या प्रेम की कमी हो उसे ईशर गवरजा के दर्शन के साथ अथाह प्रेम के भण्डार श्रीकृष्ण के दर्शन व प्रशाद चढ़ाने से व किसी शुभ काम मे विघ्न आते हो तो आलूजी की गवरजा के साथ विराजित भगवान गणपति से प्रार्थना करनी चाहिये। बारह गुवाड़ चौक में चैत्र शुक्ला एकादशी व द्वादशी को भरने वाले मेले में आलूजी की परिवार के अलावा भी कई गवरजा विराजमान होती है। मदनजी छंगाणी की गवर, सत्यनारायण जी ओझा की गवर, मुलसा की गवर, गोवर्धनजी की गवर,पुरोहित जी की गवर, भंवरजी की गवर व बैजनाथ जी पुरोहितजी की गवर । बारह गुवाङ चौक शिव मंदिर के पीछे घर के आगे लोहे के बने छप्पर के नीचे
बैजनाथ पुरोहितजी की गवर उसी दिन शाम को ही विराजित होती है जहाँ नव विवाहितों या संतान की कामना रखने वाले गवरजा के गुड्डा और गुड्डियां चढ़ाते है (उसको मोली गवरजा के लपेटते है )और मोली व सूत बांधते है। फुनी देवी के अनुसार ऐसा विश्वास है कि गुड्डा चढ़ाने वालों के पुत्र व गुड्डी चढ़ाने वालों के पुत्री होती है, भाव व आस्था जरूरी है । चौक व आस पास की गलियों में जहाँ गवरे बैठती वहॉ सभी गवरो का लोग खोला भरते है। ऐसी मान्यता है कि बारह मासा गणगौर व्रत करने वाली महिलाओं को 12 या 16 गवरजा का खोल से उनका व्रत सफल होता है और जिस कामना से व्रत किया है वो कामना पूर्ण होती है। रमक झमक द्वारा बारहमासा गणगौर पूजन व व्रत में क्या करें, कब करें, क्या चढ़ाए क्या फल है। ये सब आगे पोस्ट में जानें जो बहुत उपयोगी है।
–प्रहलाद ओझा ‘भैरु’ 9460502573